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________________ ६५० ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १४. एवं पज्जत्तबायरपुढविकाइओ वि । ८० । [१४] इसी प्रकार पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक के उपपात का कथन जानना चाहिए।॥ = ८० ॥ १५. एवं आउकाइओ वि चउसु वि गमएसु पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए एयाए चेव वत्तव्वयाए एएस चेव वीसाए ठाणेसु उववातेयव्वो । १६० । [१५] इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के चार गमकों द्वारा पूर्व - चरमान्त में मरणसमुद्घातपूर्वक मरकर इन्हीं पूर्वोक्त वीस स्थानों में पूर्ववत् वक्तव्यता से उपपात का कथन करना चाहिए।॥ = १६० ॥ १६. सुहुमतेउकाइओ वि अपज्जत्तओ पज्जत्तओ य एएसु चेव वीसाए ठाणेसु उववातेयव्वो । ॥ ४० = २०० ॥ [१६] अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों का भी इन्हीं वीस स्थानों में पूर्वोक्तरूप से उपपात कहना चाहिए ॥ =+४०=२०० ॥ १७. अपज्जत्तबायरतेउकाइए णं भंते! मणुस्सखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? सेसं तहेव जाव से तेणट्टेणं । १ = २०१ । [१७ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं, हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? - 'तीन समय की विग्रहगति [१७ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समग्र वक्तव्यता इस कारण से वह से उत्पन्न होता है, यहाँ तक कहनी चाहिए ॥ + १ = २०१ ॥ = २०४ ॥ १८. एवं पुढविकाइएसु चउव्विहेसु वि उववातेयव्वो । ३ [१८] इसी प्रकार चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में भी पूर्ववत् उपपात कहना चाहिए। ॥ + ३ = २०४ ॥ १९. एवं आउकाइएसु चउव्विहेसु वि । ४ = २०८ ॥ [१९] चार प्रकार के अप्कायिकों में भी इसी प्रकार उपपात कहना चाहिए। ॥ + ४ = २०८ ॥ २०. तेउकाइएसु सुहुमेसु अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य एवं चेव उववातेयव्वो । २ = २१० । [२०] सूक्ष्मतेजस्कायिक जीव के पर्याप्तक और अपर्याप्तक में भी इसी प्रकार उपपात कहना चाहिए। ॥ २०८+२=२१० ॥ २१. अपज्जत्तबादरतेउकाइए णं भंते ! मणुस्सखेत्ते समोहइए, समोहणित्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! कतिसम० ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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