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________________ चौतीसवाँ शतक : उद्देशक-१] [६४९ का उपपात कहना चाहिए। ७. एवं चेव सुहुमतेउकाइएहिं वि अपज्जत्तएहिं १, ताहे पजत्तएहिं उववातेयव्वो २। [७] इसी प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक और उसी के पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए। ८. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपजत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा ? सेसं तं चेव ३। _[८ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, जो इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके मनुष्य-क्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [८ उ.] गौतम ! (इस सम्बन्ध में) सब वक्तव्यता पूर्ववत् कहनी चाहिए। ९. एवं पजत्तंबायरतेउकाइयत्ताए उववातेयव्वो ४। [९] इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप से उपपात का कथन करना चाहिए। १०. वाउकाइए सुहुम-बायरेसु जहा आउकाइएसु उववातिओ तहा उववातेयव्वो ४। [१०] जिस प्रकार सूक्ष्म और बादर अप्कायिक का उपपात कहा, उसी प्रकार सूक्ष्म और बादर वायुकायिक का उपपात कहना चाहिए। ११. एवं वणस्सतिकाइएसु वि ४२० । [११] इसी प्रकार (सूक्ष्म और बादर) वनस्पतिकायिक जीवों के उपपात के विषय में भी कहना चाहिए। ॥ २०॥ १२. पजत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए० ? एवं पज्जत्तसुहुमपुढविकाइओ वि पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता एएणं चेव कमेणं एएसु चेव वीससु ठाणेसु उववातेयव्वो जाव बायरवणस्सतिकाइएसु पजत्तएसु ति। ४०। [१२ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? । [१२ उ.] गौतम ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव भी रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात से मर कर क्रमश: इन वीस स्थानों में बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक तक, उपपात कहना चाहिए ॥ =४०॥ १३. एवं अपज्जत्तबायरपुढविकाइओ वि।६०। [१३] इसी प्रकार अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक का उपपात भी कहना चाहिए। ॥ =६० ॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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