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६४४] नवमे एगिंदियसए : पढमाइ-नवमा-पजंता उद्देसगा
नौवाँ एकेन्द्रियशतक : पहले से नौवें उद्देशक तक पंचम एकेन्द्रियशतक के नौ उद्देशकानुसार : अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय-वक्तव्यता-निर्देश
१. कतिविधा णं भंते ! अभवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा अभवसिद्धीया० पन्नत्ता, तं जहा—पुढविकाइया जाव वणस्सतिकायिया। [१ प्र.] भगवन् ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? ।
[१ उ.] गौतम ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा—पृथ्वीकायिक (से लेकर) यावत् वनस्पतिकायिक। २. एवं जहेव भवसिद्धीयसयं, नवरं नव उद्देसगा, चरिम-अचरिमउद्देसकवजं। सेसं तहेव। ॥ नवमे एगिंदियसए : पढमाइ-नवम-पजंता उद्देसगा समत्ता॥९।१-११॥
॥तेतीसइमे सए : नवमं एगिदियसयं समत्तं ॥ ३३-९॥ [२] जिस प्रकार भवसिद्धिकशतक कहा, उसी प्रकार अभवसिद्धिकशतक भी कहना चाहिए; किन्तु 'चरम' और 'अचरम' इन दो उद्देशकों को छोड़कर इनके शेष नौ उद्देशक कहने चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है।
॥ नवम एकेन्द्रियशतक : पहले से नौवें उद्देशक-पर्यन्त समाप्त॥
॥ तेतीसवाँ शतक : नौवाँ एकेन्द्रियशतक सम्पूर्ण ॥
दसमे एगिंदियसए : पढमाइ-नवम-पजंता उद्देसगा
दसवाँ एकेन्द्रियशतक : पहले से नौवें उद्देशक-पर्यन्त छठे एकेन्द्रियशतकानुसार : कृष्णलेश्यी-अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-वक्तव्यता-निर्देश १. एवं कण्हलेस्सअभवसिद्धीयसयं पि। ॥दसमे एगिंदियसए : पढमाइ-नवम-पजंता-उद्देसगा समत्ता॥१०।१-९॥
॥ तेतीसइमे सए : दसमं एगिदियसयं समत्तं ॥ ३३-१०॥ [१] इसी प्रकार (पूर्ववत्) कृष्णलेश्यी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी कहना चाहिए।
॥ दसवाँ एकेन्द्रियशतक : पहले से नौवें उद्देशक तक समाप्त॥
॥ तेतीसवां शतक : दसवाँ एकेन्द्रियशतक सम्पूर्ण॥
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