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पढमे एगिंदियसए : चउत्थाइ-एक्कारस पजंता उद्देसगा
प्रथम एकेन्द्रियशतक : चौथे से लेकर ग्यारहवें उद्देशकपर्यन्त
१. अणंतरोगाढा जहा अणंतरोववन्नगा॥ ३३-१-४॥ [१] अनन्तरावगाढ़ एकेन्द्रिय के सम्बन्ध में अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान कहना चाहिए॥ ३३।१।४॥ २. परंपरोगाढा जहा परंपरोववन्नगा॥ ३३-१-५॥ [२] परम्परावगाढ़ एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहि ॥ ३३ । १।५ ॥ ३. अणंतराहारगा जहा अणंतरोववन्नगा ॥३३-१-६॥ [३] अनन्तराहारक एकेन्द्रिय का कथन अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के अनुसार समझना चाहिए ॥ ३४।१।६।। ४. परंपराहारगा जहा परंपरोववन्नगा ॥३३-१-७॥ [४] परम्पराहारक एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपन्नक उद्देशक के अनुसार समझना चाहिए ॥ ३४।१।७॥ ५. अणंतरपज्जत्तगा जहा अणंतरोववन्नगा॥ ३३-१-८॥ [५] अनन्तरपर्याप्तक एकेन्द्रिय की वक्तव्यता अनन्तरोपपन्नक के समान जाननी चाहिए ॥ ३३ । १।८॥ ६. परंपरपज्जत्तगा जहा परंपरोववन्नगा॥ ३३-१-९॥ [६] परम्परपर्याप्तक एकेन्द्रिय की वक्तव्यता परम्परोपपन्नक के समान जाननी चाहिए ॥ ३३ । १।९॥ ७. चरिमा वि जहा परंपरोववन्नगा॥३३-१-१०॥ [७] चरम एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपत्रक उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए ॥ ३३ । १ । १० ॥ ८. एवं अचरिमा वि एवं एते एक्कारस उद्देसगा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति॥३३-१-११॥
॥ तेतीसइमे सए : चउत्थाइ-एगारस पजंता उद्देसगा समत्ता॥
॥ तेतीसइमे सए : पढमं एगिंदियसयं समत्तं ॥३३-१॥ [८] इसी प्रकार अचरम एकेन्द्रिय-सम्बन्धी वक्तव्यता भी जान लेनी चाहिए। ये सभी ग्यारह उद्देशक हुए ॥ ३३ । १-११॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसीप्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं।