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________________ ६१२] तइओ उद्देसओ : तृतीय उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म-विशिष्ट नीललेश्यी नैरयिकों सम्बन्धी प्ररूपणा १. नीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? ० एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मा, नवरं उववातो जो वालुयप्पभाए। सेसं तं चेव। [१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशि-प्रमाण नीललेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के समान। किन्तु उनका उपपात बालुकाप्रभापृथ्वी के समान है। शेष पूर्ववत्। २. वालुयप्पभपुढविनीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया०? एवं चेव। [२ प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण बालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [२ उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। ३. एवं पंकप्पभाए वि, एवं धूमप्पभाए वि। [३] इसी प्रकार पंकप्रभा और धूमप्रभा वाले क्षुद्रकृतयुग्म नीललेश्यी के विषय में समझना। ४. एवं चउसु वि जुम्मेसु, नवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए। सेसं तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥इक्कतीसइमे सए : ततिओ उद्देसओ समत्तो॥३१-३॥ [४] इसी प्रकार चारों युग्मों के विषय में समझना। परन्तु विशेष यह है कि जिस प्रकार कृष्णलेश्या के उद्देशक में परिमाण बताया है, उसी प्रकार यहाँ भी समझना। शेष सब पूर्वकथितानुसार। .. ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन–नीललेश्यी नैरयिक सम्बन्धी—इस तृतीय उद्देशक में नीललेश्या वाले नैरयिकों की प्ररूपणा की गई है। नीललेश्या तृतीय, चतुर्थ और पंचम नरकपृथ्वी में होती है। इसलिए एक सामान्य दण्डक तथा तीन नरक-सम्बन्धी तीन दण्डक, यों चार दण्डक कहे हैं। यहाँ नीललेश्या का प्रकरण है। नीललेश्या बालुकाप्रभा में होती है, इस अपेक्षा से इसमें जिन जीवों की उत्पत्ति होती है, उन्हीं की उत्पत्ति जाननी चाहिए। इसमें असंज्ञी और सरीसृप के सिवाय शेष तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य उत्पन्न होते हैं।' ॥ इकतीसवां शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त॥ *** १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९५०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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