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________________ इकतीसवाँ शतक : उद्देशक - १] ११. एवं जाव अहेसत्तमाए । [११] इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिए। १२. खुड्डागदावरजुम्मनेरतिया णं भंते ! कओ उववजंति ? एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे, नवरं परिमाणं दो वा, छ वा, दस वा, चोइस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा । सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए । [१२ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रद्वापरयुग्म - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१२ उ.] गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार इनका उत्पाद जानना चाहिए । किन्तु ये परिमाण में—दो, छह, दस, चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । १३. खुड्डागकलियोगनेरतिया णं भंते! कतो उववज्जंति० ? ८६०९ L एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे, नवरं परिमाणं एक्को वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जंति । सेसं तं चैव । [१३ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकल्योज - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१३ उ.] गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसर इनकी उत्पत्ति जाननी चाहिए। किन्तु ये परिमाण में— एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् । १४. एवं जाव अहेसत्तमाए । सेवं भंते! सेवं भंते ! जाव विहरति । ॥ इकतीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ३१-१॥ [१४] इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ इकतीसवाँ शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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