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________________ तीसवां शतक : उद्देशक-२] [६०१ [५ प्र.] भगवन् ! क्या क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [५ उ.] गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य नहीं बांधते। ६. एवं अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। .[६] इसी प्रकार अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी अनन्तरोपपत्रक नैरयिक के विषय में समझना चाहिए। ७. सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव नो देवाउयं पकरेंति। [७ प्र.] भगवन् ! क्या सलेश्य क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक नारकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [७ उ.] गौतम! वै नैरयिकायुष्य यावत् देवायुष्य नहीं बांधते हैं। . ८. एवं जाव वेमाणिया। [८] इसी प्रकार (असुरकुमारादि से लेकर) वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। ९. एवं सव्वट्ठाणेसु वि अणंतरोववन्नगा नेरइया न किंचि वि आउयं पकरेंति जाव अणागारोवउत्त त्ति। [९] इसी प्रकार सभी स्थानों में अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, यावत् अनाकारोपयुक्त जीव किसी भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं करते हैं। १०. एवं जाव वेमाणिया, नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं। [१०] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए; किन्तु जिसमें जो बोल सम्भव हो, वह उसमें कहना चाहिए। विवेचन अनन्तरोपपन्नक नैरयिकादि चौवीस दण्डकों का आयुष्यबन्ध–प्रस्तुत प्रकरण आयुष्यबन्ध का है। अनन्तरोपपन्नक किसी भी विशेषण से युक्त हो, उसमें किसी भी प्रकार का आयुष्य नहीं बांधता है। क्रियावादी आदि चारों में अनन्तरोपपन्नक चौवीस दण्डकों की ग्यारह स्थानों द्वारा भव्याभव्यत्व-प्ररूपणा ११. किरियावाई णं भंते ! अणंतरोववनगा नेरइया किं भवसिद्धीया अभवसिद्धीया ? गोयमा ! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया। [११ प्र.] भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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