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________________ ५८६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कृष्णपाक्षिकत्वादि जो स्थान हैं, उन सभी में अक्रियावादी और अज्ञानवादी समवसरण होते हैं। इस प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए किन्तु यहाँ इतना समझना आवश्यक है कि क्रियावाद और विनयवाद विशिष्ट सम्यक्त्वादि परिणाम के सद्भाव में होते हैं। इसलिए यद्यपि द्वीन्द्रिय आदि जीवों में सास्वादनगुणस्थान की प्राप्ति के समय सम्यक्त्व और ज्ञान का अंश होने से उनमें क्रियावादिता युक्तियुक्त है, तथापि वे क्रियावादी और विनयवादी नहीं कहलाते। .. (३) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में अलेश्यत्व, अकषायत्व आदि की पृच्छा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये स्थान इनमें नहीं होते। अन्य सब बातें स्पष्ट हैं।' क्रियावादादि चतुर्विध समवसरणगत जीवों की ग्यारह स्थानों में आयुष्यबन्ध-प्ररूपणा ३३. [१] किरियावादी णं भंते ! जीवा किं नेरतियाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति। [३३-१ प्र.] भगवन् ! क्रियावादी जीव नारकायु बांधते हैं । तिर्यञ्चायु बांधते हैं, मनुष्यायु बांधते हैं अथवा देवायु बांधते हैं ? [३३-१ उ.] गौतम ! क्रियावादी जीव नैरयिक और तिर्यञ्चयोनिक का आयुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्यायु और देवायु बांधते हैं। [२] जति देवाउयं पकरेंति किं भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, जाव वेमाणियदेवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति, नो जोतिसियदेवाउयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति। _ [३३-२ प्र.] भगवन् ! यदि क्रियावादी जीव देवायुष्य बांधते हैं तो क्या वे भवनवासी-देवायुष्य बांधते है, वाणव्यन्तर-देवायुष्य बांधते हैं, ज्योतिष्क-देवायुष्य बांधते हैं अथवा वैमानिक देवायुष्य बांधते हैं? [३३-२ उ.] गौतम ! वे न तो भवनवासी-देवायुष्य बांधते हैं, न वाणव्यन्तर-देवायुष्य बांधते हैं और न ही ज्योतिष्क-देवायुष्य बांधते हैं, किन्तु वैमानिक-देवायुष्य बांधते हैं। . ३४. अकरियावाई णं भंते ! जीवा किं नेरतियाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नेइयाउयं पि पकरेंति, जाव देवाउयं पि पकरेंति। [३४ प्र.] भगवन् ! अक्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य बांधते हैं, तिर्यञ्चायुष्य बांधते हैं, मनुष्यायुष् बांधते हैं, अथवा देवायुष्य बांधते हैं ? १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४४ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ९, पृ. ३६०९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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