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________________ - [५७९ तीसइमं सयं : समवसरण-सयं तीसवां शतक : समवसरण—शतक पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक समवसरण और उसके चार भेद १. कति णं भंते ! समोसरणा पन्नत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं जहा—किरियावादी अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी। [१ प्र.] भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं ? _ [१ उ.] गौतम ! समवसरण चार कहे हैं । यथा—१. क्रियावादी, २. अक्रियावादी, ३. अज्ञानवादी और ४. विनयवादी। विवेचन–समसरण का स्वरूप-कथञ्चित् तुल्यता के कारण नाना परिणाम वाले जीव जिसमें (जिस विषय में) रहते हैं—समवसृत (जहाँ एकत्रित) होते हैं, उसे अर्थात्-भिन्न-भिन्न मतों या दर्शनों को समवसरण कहते हैं । अथवा परस्पर भिन्न क्रियावाद आदि मतों में कथञ्चित् समानता होने से कहीं-कहीं वादियों का अवतरण समवसरण कहलाता है। समवसरण के चार भेद हैं—क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी। इन मतों के सम्बन्ध में विस्तृत तथ्य प्राप्त नहीं होते। क्रियावादी आदि की पुरातन और प्रस्तुत व्याख्या (१) क्रियावादी—कर्ता के विना क्रिया सम्भव नहीं। इसलिए क्रिया का जो कर्ता-आत्मा है, उसके अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी हैं। अथवा क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है, ऐसी क्रिया-प्राधान्य की मान्यता वाले १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४४ (१) समवसरन्ति नानापरिणामा जीवाः कथञ्चित्तुल्यतया येषु तानि समवसरणानि। (२) समवसृतयो वाऽन्योऽन्यभिन्नेषु क्रियावादादिमतेषु कथञ्चित्तुल्यत्वेन क्वचिद् केषांचित् वादिनामवताराः समवसरणानि। २. (क) श्रीमद्भगवतीसूत्र, चतुर्थखण्ड (गुजराती-अनुवाद), पृ. ३०२ (ख) आचारांगवृत्ति अ. १, उ. १, पत्र १६
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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