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________________ छव्वीसवाँ शतक : उद्देशक - १] [ ५२९ कृष्णपाक्षिक जीवों में ‘बांधेंगे नहीं', यह अंश असम्भव प्रतीत होता है तथा शुक्लपाक्षिक जीवों में बांधेंगे नहीं, इस अंश का अवश्य सम्भव होने से 'बांधेंगे' इस अंश से युक्त प्रथम भंग क्यों नहीं घटित होता ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शुक्लपाक्षिक जीवों में प्रश्न- समय के अनन्तर (तुरन्त पश्चात् ) समय की अपेक्षा प्रथम भंग है तथा कृष्णपाक्षिक जीवों में शेष समयों की अपेक्षा दूसरा भंग घटित होता है। इस दृष्टि से शुक्लपाक्षिक जीवों में चारों ही भंगों की सम्भावना बताई गई है। प्रथम भंग तो प्रश्न- समय के अनन्तर तात्कालिक (आसन्न) भविष्यत्काल की अपेक्षा घटित होता है। दूसरा भंग भविष्यत्काल में क्षपक-अवस्था की प्राप्ति की अपेक्षा घटित होता है। तीसरा भंग उन शुक्लपाक्षिक जीवों में घटित होता है, जो मोहनीयकर्म का उपशम करके पीछे गिरने वाले हैं और चौथा भंग क्षपक-अवस्था की प्राप्ति की अपेक्षा घटित होता है ।" चतुर्थ स्थान : सम्यक्-मिथ्या - मिश्रदृष्टि जीव की अपेक्षा पापकर्मबन्ध निरूपण १२. सम्मद्दिद्वीणं चत्तारि भंगा। [१२] सम्यग्दृष्टि जीवों के चारों भंग जानना चाहिए । १३. मिच्छादिट्ठीणं पढम - बितिया । [१३] मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। १४. सम्मामिच्छाद्दिट्ठीणं एवं चेव । [१४] सम्यग्-मिथ्यादृष्टि जीवों में भी इसी प्रकार पहला और दूसरा दो भंग जानने चाहिए। विवेचन — सम्यग्दृष्टि आदि जीवों में चतुर्भंगी प्ररूपणा — सम्यग्दृष्टि जीवों में शुक्लपाक्षिक के समान चारों ही भंग पाये जाते हैं। मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि जीवों में पहला और दूसरा, ये दो भंग पाये जाते हैं। उनके मोहनीयकर्म का बन्ध होने से अन्तिम दोनों भंग उनमें घटित नहीं होते । पंचम स्थान : ज्ञानी जीव की अपेक्षा पापकर्मबन्ध निरूपण १५. नाणीणं चत्तारि भंगा। [१५] ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । १६. आभिणिबोहियनाणीणं जाव मणपज्जवणाणीणं चत्तारि भंगा। [१६] आभिनिबोधिकज्ञानो से ( लेकर) मन: पर्यवज्ञानी जीवों तक में भी चारों ही भंग जानने चाहिए। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९२९ (ख) भगवती (हिन्दी - विवेचन ) भा. ७, पृ. ३५५० २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९३०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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