SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 648
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७] [५१७ करणोपाय (कर्मबन्ध के हेतु) द्वारा परभव की आयु बांधते हैं। ५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कहं गती पवत्तइ ? गोयमा ! आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं; एवं खलु तेसिं जीवाणं गती पवत्तति। [५ प्र.] भगवन् ! उन जीवों की गति किस कारण से प्रवृत्त होती है ? _[५ उ.] गौतम ! उन जीवों की आयु के क्षय होने से, भव का क्षय होने से और स्थिति का क्षय होने से उनकी गति प्रवृत्त होती है। ६. ते णं भंते ! जीवा किं आतिडीए उववजंति, परिड्डीए उववजंति ? गोयमा ! आतिडीए उववजंति, नो परिड्डीए उववजंति। __ [६ प्र.] भगवन् ! वे जीव आत्म-ऋद्धि (अपनी शक्ति) से उत्पन्न होते हैं या पर की ऋद्धि (दूसरों की शक्ति से)? [६ उ.] गौतम ! वे जीव आत्म-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, पर-ऋद्धि से नहीं। ७. ते णं भंते ! जीवा कि आयकम्मुणा उववजंति, परकम्मुणा उववज्जति ? गोयमा ! आयकम्मुणा उववजंति नो परकम्मुणा उववजंति। [७ प्र.] भगवन् ! वे जीव अपने कर्मों से उत्पन्न होते हैं या दूसरों के कर्मों से ? [७ उ.] गौतम ! वे जीव अपने कर्मों से उत्पन्न होते हैं, दूसरों के कर्मों से नहीं। ८. ते णं भंते ! जीवा किं आयप्पयोगेणं उववजंति, परप्पयोगेणं उववजंति ? गोयमा ! आयप्पयोगेणं उववजंति, नो परप्पयोगेणं उववति। [८ प्र.] भगवन् ! वे जीव अपने प्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्रयोग से ? [८ उ.] गौतम ! वे अपने प्रयोग (व्यापार) से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। ९. असुरकुमारा णं भंते ! कहं उववजंति ? जहा नेरतिया तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववति। [९ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार कैसे उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [९ उ.] गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों (के उत्पन्न होने आदि) का कहा, उसी प्रकार यहाँ भी आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं', तक कहना चाहिए। १०. एवं एगिदियवजा जाव वेमाणिया। एगिदिया एवं चेव, नवरं चउसमइओ विग्गहो। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति। ॥ पंचवीसइमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥ २५-८॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy