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________________ ५१६] अट्ठमो उद्देसओ : 'ओहे' अष्टम उद्देशक : 'ओघ' चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की उत्पत्ति का विविध पहलुओं से निरूपण १. रायगिहे जाव एवं वयासी[१] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा२. नेरतिया णं भंते ! कहं उववजंति? गोयंमा ! से जहाणामए पवए पवमाणे अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहिता पुरिमं ठाणं उवसंपजित्ताणं विहरति, एवामेव ते वि जीवा पवओ विव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपजित्ताणं विहरंति। [२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? [२ उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वर्तित (निष्पन्न) क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़ कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी कूदने वाले की तरह कूदते हुए अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कर्मों द्वारा उस (पूर्व) भव को छोड़ कर भविष्यत्काल में उत्पन्न होने योग्य (आगामी) भव को प्राप्त होकर उत्पन्न होते हैं। ३. तेसि णं भंते ! जीवाणं कहं सीहा गती ? कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते ? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोद्दसमसए पढमुद्देसए (स० १४ उ० १ सु०६) जाव तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जति। तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते। [३ प्र.] भगवन् ! उन (नारक) जीवों की शीघ्रगति और शीघ्रगति का विषय कैसा होता है ? [३ उ.] गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण और बलवान् हो, इत्यादि चौदहवें शतक के पहले उद्देशक [के सू.६] के अनुसार यावत् तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं। उन जीवों की वैसी शीघ्र गति और वैसा शीघ्रगति का विषय होता है। ४. ते णं भंते ! जीवा कहं परभविमाउयं पकरेंति ? गोयमा ! अज्झवसाणजोगनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं एवं खलु ते जीवा परभवियाउयं पकरेंति। [४ प्र.] भगवन् ! वे जीव परभव की आयु किस प्रकार बांधते हैं ? [४ उ.] गौतम ! वे जीव अपने अध्यवसाय योग (अध्यवसायरूप मन आदि के व्यापार) से निष्पन्न
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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