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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७]
[४९१ अन्य आगमों में आचार्य, उपाध्याय के अतिरिक्त दूसरे साधुओं के लिए भी दसों प्रायश्चित्तों का अवधान मिलता है। छठा तपोद्वार : तप के भेद-प्रभेद
१९६. दुविधे तवे पन्नत्ते, तं जहा–बाहिरए य, अभितरए य। [१९६] तप दो प्रकार का कहा गया है। यथा—बाह्य और आभ्यन्तर। १९७. से किं ते बाहिरए तवे ?
बाहिरए तवे छविधे पन्नत्ते, तं जहा—अणसणोमोयरिया १-२ भिक्खायरिया ३ य रसपरिच्चाओ ४। कायकिलेसो ५ पडिसंलीणया ६।
[१९७ प्र.] (भगवन्! ) वह बाह्य तप किस प्रकार का है ?
[१९७ उ.] (गौतम! ) बाह्य तप छह प्रकार का कहा गया है—(१) अनशन, (२) अवमौदर्य, (३) भिक्षाचर्या, (४) रसपरित्याग, (५) कायक्लेश और (६) प्रतिसंलीनता।
विवेचन–तप और उसके भेद-शरीर, आत्मा, कर्म या विकारों को जिससे तपाया जाए, उसे तप कहते हैं। जैसे—अग्नि में तप्त होकर सोना विशुद्ध और मलरहित हो जाता है, वैसे ही तपस्या रूपी अग्नि में तपी हुई आत्मा कर्ममल, विकार या पाप आदि से रहित होकर निर्मल और विशुद्ध हो जाती है । वह तप दो प्रकार का है—बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य तप शरीर और इन्द्रियों आदि से विशेष सम्बन्ध रखता है, जबकि आभ्यन्तर तप मन और आत्मा से सम्बद्ध है। इनके प्रत्येक के छह-छह भेद हैं। अनशन तप के भेद-प्रभेद .
१९८. से किं तं अणसणे? अणसणे दुविधे पन्नत्ते, तं जहा—इत्तरिए य आवकहिए य। [१९८ प्र.] भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का है? [१९८ उ.] गौतम ! अनशन दो प्रकार का कहा है, यथा—इत्वरिक और यावत्कथिक। १९९. से किं तं इत्तरिए?
इत्तरिए अणेगविधे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छटे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवालसमे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते। जाव छम्मासिए भत्ते। से तं इत्तरिए।
[१९९ प्र.] भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ?.
१. (क) भगवती. (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. १६, पृ. ४२४-४२५
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३४९३-९४ २. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३४९५