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________________ ४८८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाले शिष्य की लज्जा मीठे वचनों से दूर करके भलीभाँति आलोचना कराने वाले। (५) प्रकुर्वकआलोचना किए हुए दोष का योग्य प्रायश्चित्त देकर अतिचारों की शुद्धि कराने में समर्थ । (६)अपरिनावीआलोचना करने वाले के दोषों को दूसरे के समक्ष प्रकाशित नहीं करने वाले।(७) निर्यापक-अशक्ति या किसी अन्य कारण से एक साथ पूरा प्रायश्चित्त लेने में असमर्थ साधु को थोड़ा-थोड़ा प्रायश्चित्त देकर निर्वाह कराने वाले।(८) अपायदर्शी-आलोचना नहीं लेने से परलोक का भय तथा दूसरे दोष बताकर भलीभाँति आलोचना करने वाले। ___ आलोचना सुनने वाले के यहाँ उपर्युक्त आठ गुण बताये हैं किन्तु स्थानांगसूत्र में दस गुण बताए हैं, जिनमें (९) प्रियधर्मी और (१०) दृढ़धर्मी—ये दो गुण अधिक हैं। चतुर्थ समाचारीद्वार : समाचारी के १० भेद १९४. दसविहा सामायारी पन्नत्ता तं जहा— इच्छा १ मिच्छा २ तहक्कारो ३ आवस्सिया ४ निसीहिया ५। आपुच्छणा य ६ पडिपुच्छा ७ छंदणा य ८ निमंतणा ९ । उपसंपया य काले १०, सामायारी भवे दसहा॥९॥[ दारं ४]। [१९४] समाचारी दस प्रकार की कही है, यथा [गाथार्थ]—(१) इच्छाकार, (२) मिथ्याकार, (३) तथाकार, (४) आवश्यकी, (५) नैषेधिकी, (६) आपृच्छना, (७) प्रतिपृच्छना, (८) छन्दना, (९) निमंत्रणा और (१०) उपसम्पदा ॥९॥ [चतुर्थ द्वार] विवेचन-इंच्छाकार आदि की परिभाषा-(१) इच्छाकार—'यदि आपकी इच्छा हो, तो आप मेरा अमुक कार्य करें' अथवा 'आपकी आज्ञा हो तो मैं आपका यह कार्य करूँ'- इस प्रकार पूछना 'इच्छाकार' है। इस समाचारी से किसी भी कार्य में किसी की विवशता नहीं रहती। इस समाचारी के अनुसार एक साधु, दूसरे साधु से उसकी इच्छा जानकर ही कार्य करे, अथवा दूसरा साधु अपने गुरु या बड़े साधु की इच्छा जानकर स्वयं वह कार्य करे। (२) मिथ्याकार–संयमपालन करते हुए कोई विपरीत आचरण हो गया हो, तो उस पाप के लिये पश्चात्ताप करता हुआ साधु स्वयं यह उद्गार निकालता है कि 'मिच्छा मि दुक्कडं'–अर्थात् मेरा यह दुष्कृतपाप मिथ्या (निष्फल) हो, इसे मिथ्याकार-समाचारी कहते हैं। (३) तथाकार-सूत्रादि आगम-वाचना या व्याख्या के मध्य गुरु से कुछ पूछने पर जब वे उत्तर दें तब अथवा व्याख्यान दें तब तहत्ति' अर्थात् आप कहते हैं वह यथार्थ है; कहना 'तथाकार' समाचारी है। (४) आवश्यकी—आवश्यक कार्य के लिए उपाश्रय से बाहर निकलते समय 'आवस्सइ-आवस्सइ' अर्थात् मैं आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाता हूँ, ऐसा कहना 'आवश्यकी' समाचारी है। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३४८९-३४९०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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