________________
४७६ ]
[१४९ प्र.] भगवन्! सामायिकसंयत के अनेक भवों में कितने आकर्ष होते हैं ? [१४९ उ.] गौतम! (उं. ६, सू. १९३ में उक्त) बकुश के समान उसके आकर्ष होते हैं । १५०. छेदोवट्ठावणियस्स० पुच्छा ।
गोयमा ! जहन्त्रेणं दोन्नि, उक्कोसेणं उवरिं नवण्हं सयाणं अंतोसहस्सस्स ।
[१५० प्र.] भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत के अनेक भवों में कितने आकर्ष होते हैं ?
[१५० उ. ] गौतम! उसके जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार के अन्दर आकर्ष
होते हैं।
१५१. परिहारविसुद्धियस्स जहन्त्रेणं दोन्नि, उक्कोसेणं सत्त ।
[१५१] परिहारविशुद्धिकसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट सात आकर्ष कहे हैं ।
१५२. सुहुमसंपरायगस्स जहन्त्रेणं दोन्नि, उक्कोसेणं नव ।
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१५२] सूक्ष्मसम्परायसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ आकर्ष होते हैं।
१५३. अहक्खायस्स जहन्त्रेणं दोन्नि, उक्कोसेणं पंच । [ दारं २८ ]
[१५३] यथाख्यातसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट पांच आकर्ष होते हैं । [ अट्ठाईसवाँ द्वार]
विवेचन —— पंचविध संयतों के आकर्ष- आकर्ष का यहाँ अर्थ है— चारित्र (संयम) की प्राप्ति । अर्थात् एक भव या अनेक भवों में अमुक संयत कितनी बार उक्त संयम को प्राप्त कर सकता है ? यह प्रश्न का आशय है । कतिपय संयतों के विषय में कथन स्पष्ट है।
छेदोपस्थापनीयसंयत के उत्कृष्ट आकर्ष एक भव में वीस पृथक्त्व कहे हैं, उसका मतलब हैबीसी यानी १२० बार उक्त चारित्र प्राप्त होता है। परिहारविशुद्धिसंयम एक भव में उत्कृष्ट तीन बार प्राप्त हो सकता है। सूक्ष्मसम्परायसंयत के एक भव में दो बार उपशम श्रेणी की सम्भावना होने से तथा प्रत्येक श्रेणी में संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान ये दो प्रकार होने से, एक भव में उत्कृष्ट चार बार सूक्ष्मसम्परायत्व की प्राप्ति घटित होती है । यथाख्यातसंयत के दो बार उपशमश्रेणी की सम्भावना होने से दो आकर्ष (दो बार चारित्र - प्राप्ति) हो सकते हैं।
छह
छेदोपस्थापनीयसंयत के अनेक भवों में उत्कृष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार से कम आकर्ष होते हैं। ये इस प्रकार घटित होते हैं—छेदोपस्थापनीयसंयत के उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। उसके एक भव में छह बीसी (अर्थात् १२० बार) आकर्ष होते हैं। इस दृष्टि से आठ भवों में १२०४८ - ९६० आकर्ष हो जाते हैं। यह अपेक्षा सम्भावना मात्र की अपेक्षा से बताई गई है। इसके अतिरिक्त अन्य रीति से ९०० से ऊपर संख्या घटित हो जाए, इस प्रकार घटित कर लेना चाहिए।
परिहारविशुद्धिकसंयत के एक भव में उत्कृष्ट तीन बार परिहारविशुद्धिसंयम की प्राप्ति हो सकती है। यह संयम (चारित्र) तीन भव तक प्राप्त हो सकता है। इसलिए एक भव में तीन बार, दूसरे भव में दो और तीसरे भव में दो बार, इत्यादि विकल्प से उसके अनेक भव में सात आकर्ष घटित होते हैं।