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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक-७] [४७५ विवेचन-भवग्रहण-सामायिक और छेदोपस्थापनीयसंयत जघन्य एक और उत्कृष्ट आठ भव तथा परिहारविशुद्धिकसंयत से यथाख्यातसंयत तक जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव ग्रहण करते हैं। अट्ठाईसवाँ आकर्षद्वार : पंचविध संयतों के एक भव एवं नाना भवों की अपेक्षा आकर्ष की प्ररूपणा १४४. सामाइयसंजयस्स णं भंते! एगभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं० जहा बउसस्स ( उ० ६ सु० १८८)। [१४४ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत के एक भव में कितने आकर्ष (चारित्रग्रहण) होते हैं ? - [१४४ उ.] गौतम ! उसके जघन्य और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व आकर्ष होते हैं; इत्यादि वर्णन (उ.६, सू. • १८८ में उक्त) बकुश के समान जानना। १४५. छेदोवट्ठावणियस्स० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं वीसपुहत्तं। . [१४५ प्र.] भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? [१४५ उ.] गौतम! उसके जघन्य एक और उत्कृष्ट वीस-पृथक्त्व (दो बीसी से छह बीसी तक) आकर्ष होते हैं। १४६. परिहारविसुद्धियस्स० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं तिन्नि। [१४६ प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? [१४६ उ.] गौतम! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन आकर्ष होते हैं। १४७. सुहमसंपरायस्स० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं चत्तारि। [१४७ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? [१४७ उ.] गौतम! जघन्य एक और उत्कृष्ट चार आकर्ष होते हैं। १४८. अहक्खायस्स० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं दोन्नि। [१४८ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? [१४८ उ.] गौतम! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो आकर्ष होते हैं। १४९. सामाइयसंजयस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवतिया आगरिया पन्नत्ता ? गोयमा! जहा बउसे ( उ० ६ सु० १९३)।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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