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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
वा तिन्निवा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं । पुव्वपडिवन्नए पडुच्च सिय अत्थि, सिय णत्थि । जति अथ जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं ।
[ २२९ प्र.] भगवन् ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ?
[२२९ उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान (पुलाकत्व को प्राप्त होते हुए) की अपेक्षा पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न (पहले ही उस अवस्था को प्राप्त किये हुए) की अपेक्षा भी पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथकत्व होते हैं ।
२३०. बउसा णं भंते ! एगसमएणं० पुच्छा।
गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि । जदि अत्थि जहनेणं एक्को वा दो वा तिन्निवा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं । पुव्वपडिवन्नए पडुच्च जहन्त्रेणं कोडिसयपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिसयपुहत्तं ।
[२३० प्र.] भगवन् ! बकुश एक समय में कितने होते हैं ?
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[२३० उ. ] गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा बकुश कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा बकुश जघन्य और उत्कृष्ट कोटिशतपृथक्त्व होते हैं।
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२३१. एवं पडिसेवणाकुसीला वि।
[२३१] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए।
२३२. कसायकुसीला णं पुच्छा ।
गोमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि । जदि अत्थि जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं । पुव्वपडिवन्नए पडुच्च जहनेणं कोडिसहस्सपुहत्तं, उक्कोसेणं वि कोडसहसपुहत्तं ।
[२३२ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील एक समय में कितने होते हैं ?
[२३२ उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा कषायकुशील कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं भी होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा कषायकुशील जघन्य और उत्कृष्ट कोटिसहस्रपृथक्त्व (दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक) होते हैं ।
२३३. नियंठा णं० पुच्छा ।
गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि । जदि अत्थि जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्निवा, उक्कोसेणं बावट्टं सयं अट्ठसतं खवगाणं, चउप्पण्णं उवसामगाणं । पुव्वपडिवन्नए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि । जति अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं । [२३३ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ एक समय में कितने होते हैं ?