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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१५५ उ.] गौतम ! वह एकमात्र वेदनीयकर्म बांधता है। १५६. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! एगविहबंधए वा, अबंधए वा। एगं बंधमाणे एगं वेदणिजं कम्मं बंधति।[दारं २१] [१५६ प्र.] भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ?
[१५६ उ.] गौतम ! वह एक कर्मप्रकृति बांधता है, अथवा अबन्धक होता है । एक कर्मप्रकृति बांधता है तो वेदनीयकर्म बांधता है। [इक्कीसवाँ द्वार]
विवेचन निष्कर्ष-कर्मप्रकृतियाँ आठ हैं—(१) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयुष्य, (६) नाम, (७) गोत्र और (८) अन्तराय।
पुलाक अवस्था में आयुष्यकर्म का बन्ध नहीं होता, क्योंकि उस अवस्था में उसके आयुष्य कर्मबन्ध के योग्य अध्यवसाय नहीं होते हैं।
आयुष्य के दो भाग बीत जाने पर तीसरे भाग में आयुष्य का बन्ध होता है, इसलिए आयुष्य के पहले के दो भागों में आयुष्य का बन्ध नहीं होता। अतएव बकुश आदि सात या आठ कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं। कषायकुशील सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में आयुष्य नहीं बांधता है, क्योंकि आयुष्य का बंध सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक ही होता है । कषायकुशील में बादरकषायों के उदय का अभाव होने से वह मोहनीयकर्म नहीं बांधता। इस दृष्टि से कहा गया है कि कषायकुशील आयु और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियाँ बांधता है। निर्ग्रन्थ योगनिमित्तक एकमात्र वेदनीयकर्म को ही बांधता है, क्योंकि कर्मबन्ध के हेतुओं में उसके केवल योग का ही सद्भाव होता है। स्नातक के अयोगी गुणस्थान में कर्मबन्ध के हेतु का अभाव होने से वह अबन्धक होता है।' बाईसवाँ द्वार : निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-वेदन-निरूपण
१५७. पुलाए णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा ! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति। [१५७ प्र.] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [१५७ उ.] गौतम ! वह नियम से आठों कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। १५८. एवं जाव कसायकुसीले। [१५८] इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना चाहिए। १५९. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति। (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९०३-९०४ (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् (गुजराती अनुवाद) चतुर्थखण्ड, पृ. २५४