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________________ ४१८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से दस मान लिया जाए। जैसे कि सामायिकचारित्र के सबसे अधिक पर्याय अनन्त हैं। असत्कल्पना से उन्हें १००० मान लिया जाए। जीव अनन्त हैं। उन्हें असत्कल्पना से १०० मान लिया जाए। .. १–अनन्तभाग-हीन—अब १०,००० में १०० का भाग दिया जाए, क्योंकि एक तो पूर्ण पर्याय वाला है और दूसरा अनन्तवाँ भाग हीन है। अतः १०,००० में १०० का भाग देने पर लब्धांक १०० आते हैं। अर्थात् १०,०००-१००=९९०० उसके चारित्र-पर्याय हैं। यह १०० पर्याय (अनन्तवाँ भाग-हीन) ही अनन्तवाँ भाग होता है। २-असंख्यातभाग-हीन-एक के तो पूर्ण अनन्तपर्याय हैं, जिन्हें असत्कल्पना से १०००० माना है। दूसरे साधु के चारित्र-पर्याय उससे असंख्यातवाँ भाग-हीन है। असंख्यात को असत्कल्पना से ५० माना है। १०,००० में ५० का भाग देने पर लब्धांक २०० आते हैं। इस प्रकार १०,०००-२००=९८०० पर्याय हैं। यह २०० पर्याय असंख्यातवाँ भाग-हीन हैं। ३–संख्यातभाग-हीन—एक साधु के तो पूर्ण चारित्रपर्याय अनन्त हैं, जिन्हें असत्कल्पना से १०,००० मान लीजिए। दूसरे साधक के चारित्र-पर्याय उससे संख्यातवाँ भाग हीन हैं । असत्कल्पना से संख्यात को १० माना है । १०,००० में १० का भाग देने पर लब्धांक १००० आते हैं । अतः उसके १०,००० में से १००० शेष निकालने पर ९,००० पर्याय शेष रहते हैं। पहले से इसके १००० पर्याय (संख्यातभाग) हीन हैं। ४–संख्यातगुण-हीन—जो संख्यातगुण-हीन है, उसके १००० पर्याय हैं । संख्यात को असत्कल्पना से १० माना है। पहले के चारित्र-पर्याय अनन्त हैं, दूसरे के १००० पर्याय को संख्यात-गुण—यानी १० से गुणा करने पर वह पहले वाले (अर्थात् जिसके अनन्त पर्याय हैं और जिन्हें असत्कल्पना से १०,००० माना है) के बराबर होता है। ५–असंख्यातगुण-हीन—जो असंख्यातगुण-हीन है, जिसके २०० पर्याय हैं। पहले के तो अनन्तपर्याय हैं । (जिन्हें असत्कल्पना से १०,००० माना है) अतः २०० पर्याय को असत्कल्पना से ५०वाँ भाग माना है। अत: २०० को ५० से गुणा करें तब वह पहले के बराबर होता है। ६–अनन्तगुण-हीन—जिसके अनन्तगुण-हीन पर्याय हैं, उसके १०० पर्याय माने हैं। पहले के तो अनन्त पर्याय अर्थात् असत्कल्पित १०,००० पर्याय हैं । अतः इसके १०० पर्यायों को १०० से गुणा किया जाए तब वह पहले वाले के बराबर होता है । अतः इसके पर्याय.अनन्तगुण--हीन हैं। इसका रेखाचित्र इस प्रकार हैपूर्ण पर्याय पालने वाले अपूर्ण पर्याय पालने वाले १०,००० प्रतियोगी ९,९०० अनन्तवाँ भाग-हीन १०,००० प्रतियोगी ९,८०० असंख्यातवाँ भाग-हीन १०,००० प्रतियोगी ९,००० संख्यातवाँ भाग-हीन १०,००० प्रतियोगी १,००० संख्यातगुण-हीन १०,००० प्रतियोगी २०० असंख्यातगुण-हीन १०,००० प्रतियोगी १०० अनन्तगुण-हीन
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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