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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ६ ] [१०७] इसी प्रकार स्नातक की अपेक्षा भी जानना चाहिए । १०८. पडिसेवणाकुसीलस्स एवं चेव बउवत्तव्वया भाणियव्वा । [१०८] प्रतिसेवनाकुशील के लिए भी इसी प्रकार बकुश की वक्तव्यता कहनी चाहिए । १०९. कसायकुसीलस्स एस चेव बउसवत्तव्वया, नवरं पुलाएण वि समं छट्ठाणपडिते । [ ४१५ [१०९] कषायकुशील के लिए भी यही बकुश की वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि पुलाक के साथ (तदपेक्षया) षट्स्थानपतित कहना चाहिए। ११०. णियंठे णं भंते! पुलागस्स परट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहिं० पुच्छा। गोयमा ! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्भहिए; अणंतगुणमब्भहिए। [११० प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ, पुलाक के परस्थान - सन्निकर्ष से, चारित्रपर्यायों से हीन हैं, तुल्य है या अधिक है ? [११० उ.] गौतम ! वह हीन नहीं, तुल्य भी नहीं, किन्तु अधिक है, अनन्तगुण- अधिक है । १११. एवं जाव कंसायकुसीलस्स । [१११] इसी प्रकार यावत् कषायकुशील की अपेक्षा से भी जान लेना चाहिए। ११२. नियंठे णं भंते! नियंठस्स सट्टाणसन्निगासेणं० पुच्छा । गोयमा ! नो हीणे, तुल्ले, नो अब्भहिए। [११२ प्र.] भगवन् ! एक निर्ग्रन्थ, दूसरे निर्ग्रन्थ के स्वस्थान - सन्निकर्ष से चारित्र - पर्यायों से हीन है या अधिक है ? [११२ उ.] गौतम ! वह हीन नहीं और अधिक भी नहीं, किन्तु तुल्य होता है । ११३. एवं सिणायस्स वि । [११३] इसी प्रकार स्नातक के साथ भी जानना चाहिए। ११४. सिणाए णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाणसन्नि० ? एवं जहां नियंठस्स वत्तव्वया तहा सिणायस्स वि भाणियव्वा जाव— [११४ प्र.] भगवन् ! स्नातक पुलाक के परस्थान - सन्निकर्ष से चारित्र - पर्यायों से हीन, तुल्य अथवा अधिक है ? [११४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार स्नातक की वक्तव्यता भी जाननी चाहिए। , ११५. सिणाए णं भंते ! सिणायस्स सट्टाणसन्निगासेण पुच्छा । गोयमा ! नो हीणे, तुल्ले, नो अब्ब हए।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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