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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३ उ.] गौतम ! निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के बताए हैं । यथा-(१) पुलाक, (२) बकुश, (३) कुशील, (४) निर्ग्रन्थ और (५) स्नातक।
४. पुलाए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-नाणपुलाए दंसणपुलाए चरित्तपुलाए लिंगपुलाए अहासुहुमपुलाए नामं पंचमे।
[४ प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने प्रकार के कहे हैं ?
[४ उ.] गौतम ! पुलाक पांच प्रकार के कहे हैं । यथा-(१) ज्ञानपुलाक, (२) दर्शनपुलाक (३) चारित्रपुलाक, (४) लिंगपुलाक, (५) यक्षासूक्ष्मपुलाक।
५. बउसे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा—आभोगबउसे, अणाभोगबउसे संवुडबउसे असंवुडबउसे अहासुहुमबउसे नामं पंचमे।
[५ प्र.] भगवन् ! बकुश कितने प्रकार के कहे हैं ?
[५ उ.] गौतम ! वे पांच प्रकार के कहे हैं—(१) आभोगबकुश, (२) अनाभोगबकुश, (३. संवृतबकुश, (४) असंवृतबकुश और (५) यथासूक्ष्मबकुश।
६. कुसीले णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविधे पन्नत्ते, तं जहा—पडिसेवणाकुसीले य, कसायकुसीले य। [६ प्र.] भगवन् ! कुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? [६ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के होते हैं । यथा—प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील। ७. पडिसेवणाकुसीले णं भंते कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! पंचविधे पनत्ते, तं जहा-नाणपडिसेवणाकुसीले दसणपडिसेवणाकुसीले चरित्तपडिसेवणाकुसीले लिंगपडिसेवणाकुसीले अहासुहुमपडिसेवणाकुसीले णामं पंचमे।
[७ प्र.] भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ?
[७ उ.] गौतम ! प्रतिसेवनाकुशील पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा—(१) ज्ञानप्रतिसेवनाकुशील, (२) दर्शनप्रतिसेवनाकुशील, (३) चारित्रप्रतिसेवनाकुशील, (४) लिंगप्रतिसेवनाकुशील और (५) यथासूक्ष्मप्रतिसेवनाकुशील।
८. कसायकुसीले णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?
गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-नाणकसायकुसीले दसणकसायकुसीले चरित्तकसायकुसीले लिंगकसायकुसीले, अहासुहुमकुसायकुसीले णामं पंचमे।
[८ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ?