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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ५ ]
भूत-भविष्यत् तथा सर्वकाल में पुद्गलपरिवर्तन की अनन्तता
३९. तीतद्धा णं भंते! किं संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा० पुच्छा ।
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गोयमा ! नो संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, नो असंखेज्जा, अनंता पोग्गलपरियट्टा । [३९ प्र.] भगवन् ! अतीताद्धा (भूतकाल ) क्या संख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है ? इत्यादि प्रश्न । [३९ उ.] गौतम ! न तो वह संख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है और न असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है, किन्तु अनन्त पुद्गलपरिवर्तनरूप है।
४०. एवं अणागतद्धा वि ।
[४०] इसी प्रकार अनागताद्धा (भविष्यत्काल) के सम्बन्ध में जानना चाहिए।
४१. एवं सव्वद्धा वि ।
[४१] इसी प्रकार सर्वाद्धा (सर्वकाल) के विषय में जानना ।
विवेचन — निष्कर्ष — भूतकाल, भविष्यत्काल और सर्वकाल तीनों अनन्त पुद्गलपरिवर्तन-रूप हैं। अनागतकाल की अतीतकाल से समयाधिकता
४२. अणागतद्धा णं भंते ! किं संखेज्जाओ तीतद्धाओ, संखेज्जाओ, अणंताओ ?
गोयमा ! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो असंखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो अणंताओ तीतद्धाओ, अणागयद्धा णं तीतद्धाओ समयाहिया; तीतद्धा णं अणागयद्धाओ समयूणा ।
[४२ प्र.] भगवन् ! अनागतकाल क्या संख्यात अतीतकालरूप है अथवा असंख्यात या अनन्त अतीतकालरूप है ?
[ ४२ प्र.] गौतम ! वह न तो संख्यात अतीतकालरूप हैं, न असंख्यात और अनन्त अतीतकालरूप है, किन्तु अतीताद्धाकाल से अनागताद्धाकाल एक समय अधिक है और अनागताद्धाकाल से अतीताद्धाकाल एक समय न्यून हैं ।
विवेचन — अनागतकाल का भूतकालरूप कालमान — प्रस्तुत सूत्र (४२) में बताया गया है कि अनागतकाल संख्यात-असंख्यात - अनन्त अतीतकालरूप नहीं है, किन्तु वह अतीतकाल से एक समय अधिक है । अर्थात् भूतकाल से भविष्यतकाल एक समय अधिक है, क्योंकि भूतकाल और भविष्यकाल दोनों अनादित्व और अनन्तत्व की दृष्टि से समान हैं। इसके बीच में श्री गौतमस्वामी के प्रश्न का समय है । वह अविनष्ट होने से भूतकाल में समाविष्ट नहीं किया जा सकता; किन्तु अविनष्ट धर्म की साधर्म्यता से उसका समावेश भविष्यत्काल में होता है। इसलिए भविष्यत्काल, भूतकाल से एक समय अधिक है और भूतकाल, भविष्यत्काल से एक समय न्यून है।
१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. १०१५ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८९