________________
३८२]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३४ उ.] गौतम ! वे संख्यात पल्योपमरूप अथवा असंख्यात पल्योपमरूप नहीं हैं, किन्तु अनन्त पल्योपमरूप हैं।
विवेचन—सागरोपम से सर्वकाल तक एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से पल्योपमरूप कालमानएकवचन की दृष्टि से सागरोपम से उत्सर्पिणीकाल तक संख्यात पल्योपमरूप है। पुद्गलपरिवर्तन से सर्वाद्धा (सर्वकाल) तक अनन्त पल्योपपमरूप है । बहुवचन की दृष्टि से सागरोपम से लेकर उत्सर्पिणी तक कदाचित् संख्यात, असंख्यात या अनन्त पल्योपम रूप हैं, किन्तु पुद्गलपरिवर्तन अनन्त-पल्योपम रूप हैं। उत्सर्पिणी आदि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से सागरोपम-संख्या-प्ररूपणा
३५. ओसप्पिणी णं भंते ! कि संखेजा सागरोवमा०? जहा पलिओवमस्स वत्तव्वया तहा सागरोवमस्स वि। [३५ प्र.] भगवन् ! अवसर्पिणी क्या संख्यात सागरोपम रूप है ? इत्यादि प्रश्न।
[३५ उ.] गौतम ! जैसे पल्योपम की वक्तव्यता कही थी, वैसे सागरोपम की वक्तव्यता कहनी चाहिए। पुद्गलपरिवर्तनादि कालों में एकत्व-बहुत्व दृष्टि से अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल की संख्या की प्ररूपणा
३६. पोग्गलपरियट्टे णं भंते ! किं संखेजाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ० पुच्छा।
गोयमा ! नो संखेजाओ ओसप्पिणि-उस्सपिणीओ, नो असंखेज्जाओ अणंताओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ।
[३६ प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन क्या संख्यात अवसर्पिणीरूप-उत्सर्पिणीरूप है ? इत्यादि प्रश्न ।
[३६ उ.] गौतम ! वह न तो संख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप है और न ही असंख्यात अवसर्पिणीउत्सर्पिणीरूप है, किन्तु अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप है।
३७. एवं जाव सव्वद्धा। [३७] इसी प्रकार यावत् सर्वाद्धा (सर्वकाल) तक जानना चाहिए। ३८. पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेजाओ ओसप्पिणी-उस्सपिणीओ० पुच्छा।
गोयमा ! नो संखेजाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, नो असंखेजाओ, अणंताओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ। __ [३८ प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिर्वतन क्या संख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप हैं । इत्यादि प्रश्न ।
[३८ उ.] गौतम ! वे संख्यात या असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप नहीं हैं किन्तु अनन्त अवसर्पिणीउत्सर्पिणीरूप हैं।
विवेचन—पुद्गलपरिर्वतन से सर्वाद्धा तक एकत्व-बहुत्वदृष्टि से अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप कालमान-पुद्गलपरिवर्तन आदि एक हों या अनेक, वे अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप हैं।