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________________ ३७६] पंचमो उद्देसओ : पज्जव पंचम उद्देशक : 'पर्यव' (आदि) पर्यव-भेद एवं उसके विशिष्ट पहलुओं के विषय में पर्यवपद : अतिदेश १. कतिविहा णं भंते ! पज्जवा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पजवा पन्नत्ता, तं जहा—जीवपज्जवा य अजीवपज्जवा या पजवपयं निरवसेसं भाणियव्वं जहा पण्णवणाए। [१ प्र.] भगवन् ! पर्यव कितने प्रकार के कहे हैं ? [१ उ.] गौतम ! पर्यव दो प्रकार के कहे हैं । यथा—जीवपर्यव और अजीवपर्यव। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का पांचवाँ पर्यव पद कहना चाहिए। विवेचन–पर्यव के एकार्थक शब्द-पर्यव, गुण, धर्म, विशेष, पर्यय और पर्याय, से सब पर्यव शब्द के पर्यायवाची (समानार्थक) शब्द हैं। जीवपर्यव और अजीवपर्यव के लिए प्रज्ञापनासूत्र के पांचवें पद का यहाँ अतिदेश किया गया है। जीव के अनन्त पर्यव होते हैं और अजीव के भी सब मिलाकर अनन्त पर्यव होते हैं। आवलिका से लेकर सर्वकालपर्यन्त कालभेदों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा समयसंख्या प्ररूपणा २. आवलिया णं भंते ! किं संखेजा समया, असंखेजा समया, अणंता समा? गोयमा ! नो संखेजा समया, असंखेजा समया, नो अणंता समया। [२ प्र.] भगवन्! क्या आवलिका संख्यात समय की, असंख्यात समय की या अनन्त समय की होती है ? [२ उ.] गौतम ! वह न तो संख्यात समय की होती है और न अनन्त समय की होती है, किन्तु असंख्यात समय की होती है। ३. आणापाणू णं भंते.! किं संखेजा०? एवं चेव। [३ प्र.] भगवन् ! आनप्राण (श्वासोच्छ्वास) संख्यात समय का होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [३ प्र.] गौतम ! पूर्ववत् (असंख्यात समय का) होता है। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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