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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
जो स्कन्ध होते हैं, वे सार्द्ध होते हैं, उनके बराबर दो भाग हो सकते हैं और विषमसंख्या वाले प्रदेशों के जो स्कन्ध होते हैं, वे अनर्द्ध होते हैं, क्योंकि उनके दो बराबर भाग नहीं हो सकते। जब बहुत-से परमाणु समसंख्या वाले होते हैं, तब सार्द्ध होते हैं और जब वे विषमसंख्या वाले होते हैं, तब अनर्द्ध होते हैं, क्योंकि संघात (मिलने) और भेद (पृथक् होने) से उनकी संख्या अवस्थित नहीं होती। इसलिए वे सार्द्ध और अनर्द्ध दोनों प्रकार के होते हैं ।
परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक सकम्पता - निष्कम्पता प्ररूपणा
१८९. परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सेए, निरेए ?
गोयमा ! सिय सेए, सिय निरेए ।
[१८९ प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु - पुद्गल सैज (सकम्प ) होता है या निरेज (निष्कम्प ) ? [१८९ उ.] गौतम ! वह कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है ।
१९०. एवं जाव अणंतपएसिए ।
[१९०] इसी प्रकार (द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर) अनन्तप्रदेशी स्कन्धपर्यन्त जानना चाहिए । १९१. परमाणुपोग्गला णं भंते! किं सेया, निरेया ?
गोयमा ! सेया वि, निरेया वि ।
[१९१ प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणु - पुद्ग्ल सकम्प होते हैं या निष्कम्प ?
[१९१ उ.] गौतम ! वे सकम्प भी होते हैं और निष्कम्प भी होते हैं।
१९२. एवं जाव अणंतपएसिया ।
[१९२] इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए।
विवेचन — सैज और निरेज का आशय – सैज का अर्थ है— कम्पन, स्पन्दन या चलनादि धर्म युक्त तथा निरेज का अर्थ है— कम्पन, स्पन्दन या चलनादि धर्म से रहित । परमाणु की प्राय: निष्कम्पदशा होती है, उसकी सकम्पदशा कदाचित्क होती है, सदा नहीं। इसी आशय से परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को सकम्प और निष्कम्प दोनों बताया है।
सकम्प निष्कम्प परमाणु- पुद्गल से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक की स्थिति तथा कालान्तर
प्ररूपणा
१९३. परमाणुपोग्गले णं भंते! सेए कालओ केवचिरं होति ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८३
२. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८६
(ख) भगवती (हिन्दी - विवेचन) भा. ७, पृ. ३३२५
(ग) भगवती. प्रमेयचन्द्रिकाटीका, भाग १५, पृ. ८९५