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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-४] [३४७ एकादिगुण कर्कश स्पर्श वाले पुद्गलों की द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ से विशेषाधिकतादि प्ररूपणा ११३. एएसि णं भंते ! एगगुणकक्खडाणं दुगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया ? गोयमा ! एगगुणकक्खडेहितो पोग्गलेहितो दुगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए विसेसाहिया। [११३ प्र.] भगवन् ! एकगुण-कर्कश और द्विगुण-कर्कश पुद्गलों में द्रव्यार्थ रूप से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? [११३ उ.] गौतम! एकगुण-कर्कश पुद्गलों से द्विगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से विशेषाधिक हैं। ११४. एवं जाव नवगुणकक्खडेहिंतो पोग्गलेहितो दसगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए विसेसाहिया। दसगुणकक्खडेहिंतो पोग्गलेहिंतो संखेजगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। संखेजगुणकक्खडेहिंतो पोग्गलेहितो असंखेजगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया।असंखेजगुणकक्खडेहिंतो पोग्गलेहिंतो अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। _ [११४] इसी प्रकार यावत् नवगुण-कर्कश पुद्गलों से दशगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से विशेषाधिक हैं । दशगुण-कर्कश पुद्गलों से संख्यातगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ रूप से बहुत हैं। संख्यातगुण-कर्कश पुद्गलों से असंख्यातगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से बहुत हैं। असंख्यातगुण-कर्कश पुद्गलों से अनन्तगुणकर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से बहुत हैं । ११५. एवं पएसट्टयाए वि। सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा। [११५] प्रदेशार्थरूप से समग्र वक्तव्यता भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। सर्वत्र प्रश्न करना चाहिए। ११६. जहा कक्खडा एवं मउय-गरुय-लहुया वि। [११६] कर्कश स्पर्श सम्बन्धी वक्तव्यता के अनुसार मृदु (कोमल), गुरु (भारी) और लघु (हलके) स्पर्श के विषय में समझना चाहिए। ११७. सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खा जहा वण्णा। [११७] शीत, उष्ण, स्निग्ध (चिकना) और रूक्ष स्पर्श के विषय में वर्णों की वक्तव्यता के अनुसार जानना चाहिए। विवेचन—स्पर्श-विशिष्ट पुद्गलों में अल्पबहुत्व-वर्णादिभावविशिष्ट पुद्गलों के अल्पबहुत्व की विचारणा के सन्दर्भ में कर्कशादि चार स्पर्शों से युक्त पुद्गलों में पूर्व-पूर्व से उत्तर-उत्तर वाले पुद्गल द्रव्यार्थरूप से तथाविध स्वभाव के कारण बहुत कहने चाहिए। शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों से युक्त पुद्गलों में काले आदि वर्णविशेषों के समान दश गुणों तक उत्तर-उत्तर वालों से पूर्व-पूर्व वाले बहुत कहने चाहिए। शेष मूल पाठ से स्पष्ट है। ११८. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं, संखेजपदेसियाणं असंखेजपएसियाणं अणंतपएसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विवेसाहिया वा? १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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