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________________ ३४६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! एगपएसोगादेहितो पोग्गलेहिंतो दुपएसोगाढा पोग्गला पएसट्टयाए विसेसाहिया। [१०८ प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़ और द्विप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों में प्रदेशार्थ-रूप से कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ? [१०८ उ.] गौतम ! एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से द्विप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थरूप से विशेषाधिक हैं। __ १०९. एवं जाव नवपएसोगाढेहितो पोग्गलेहितो दसपएसोगाढा पोग्गला पएसट्ठयाए विसेसाहिया। दसपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहितो संखेजपएसोगाढा पोग्गला पएसट्ठयाए बहुया। संखेजपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहितो असंखेजपएसोगाढा पोग्गला पएसट्ठयाए बहुया। [१०९] इसी प्रकार यावत् नवप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से दशप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से विशेषाधिक हैं । दशप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से बहुत हैं । संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से बहुत हैं।। ११०. एएसि णं भंते ! एगसमयद्वितीयाणं दुसमयद्वितीयाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए० ? जहा ओगाहणाए वत्तव्वया एवं ठितीए वि। . [११० प्र.] भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले पुद्गलों में द्रव्यार्थरूप से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? - [११० उ.] गौतम! अवगाहना की वक्तव्यता के अनुसार स्थिति की वक्तव्यता जाननी चाहिए। विवेचन—एकप्रदेशावगाढ़-परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक एकप्रदेशावगाढ़ होते हैं। द्विप्रदेशावगाढ़-द्वयणुक से लेकर अनन्त-अणुकस्कन्ध तक द्विप्रदेशावगाढ़ होते हैं। त्रिप्रदेशावगाढ़त्रिप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक त्रिप्रदेशावगाढ़ होते हैं। इस प्रकार चतुष्कप्रदेशावगाढ़ से लेकर असंख्यातप्रदेशावगाढ़ स्कन्ध तक जान लेना चाहिए।' एकगुण काले आदि वर्ण तथा गन्ध-रस-स्पर्श वाले पुद्गलों की वक्तव्यता १११. एएसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं दुगुणकालगाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए ? एएसि जहा परमाणुपोग्गलादीणं तहेव वत्तव्वया निरवसेसा। [१११ प्र.] भगवन् ! एकगुणकाले और द्विगुणकाले पुद्गलों में द्रव्यार्थरूप से कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? [१११ उ.] गौतम! परमाणु पुद्गल आदि की वक्तव्यता के अनुसार इनकी सम्पूर्ण वक्तव्यता जाननी चाहिए। ११२. एवं सव्वेसि वण्ण-गंध-रसाणं। [११२] इसी प्रकार सभी वर्गों, गन्धों और रसों के विषय में वक्तव्यता जाननी चाहिए। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७९ , (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा.७, पृ. ३२५८
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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