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पच्चीसवां शतक : उद्देशक-४]
[३४३ ९२. एवं जाव असंखेजसमयद्वितीया।
[९२] इसी प्रकार यावत् असंख्यात-समय की स्थिति वाले पुद्गलों के विषय में भी कहना चाहिए। वर्ण-गन्धादि वाले पुद्गलों की अनन्तता
९३. एगगुणकालगा णं भंते ! पोग्गला किं संखेजा० ? एवं चेव। [९३ प्र.] भगवन् ! एकगुण काले पुद्गल संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [९३ उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। ९४. एवं जाव अणंतगुणकालगा। [९४] इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों के विषय में जानना। ९५. एवं अवसेसा वि वण्ण-गंध-रस-फासा नेयव्वा जाव अणंतगुणलुक्ख त्ति।
[९५] इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों के विषय में भी अनन्तगुण रूक्ष पर्यन्त जानना। परमाणु-पुद्गल से अनन्तप्रदेशी स्कन्धों तक की द्रव्य-प्रदेशार्थ से यथायोग्य बहुत्व प्ररूपणा
९६. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाणं दवट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया ?
गोयमा ! दुपदेसिएहितो खंधेहिंतो परमाणुपोग्गला दव्वट्ठयाए बहुगा।
[९६ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? . [९६ उ.] गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्धों से परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं।
९७. एएसि णं भंते ! दुपएसियाणं तिपएसियाण य खंधाण दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुगा?
गोयमा ! तिपएसिएहितो य खंधेहिंतो दुपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुगा।
[९७ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
[९७ उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध से द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। ९८. एवं एएणं गमएणं जाव दसपएसिएहिंतो खंधेहितो नवपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया। [९८] इस गमक (पाठ) के अनुसार यावत् दशप्रदेशी स्कन्धों से नवप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं।