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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिय जाव कम्मए। एत्थ सरीरगपदं निरवसेसं भाणियव्वं जहा पण्णवणाए। __ [८१-१ प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ?
[८१-१ उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे हैं, यथा—औदारिक, वैक्रिय, यावत् कार्मण शरीर । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का बारहवाँ शरीरपद समग्र कहना चाहिए। जीव तथा चौवीस दण्डकों से सकम्प-निष्कम्प तथा देशकम्प-सर्वकम्प प्ररूपणा
८१.[१] जीवा णं भंते ! कि सेया, निरेया ? गोयमा ! जीवा सेया वि, निरेया वि। [८१-१ प्र.] भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? [८१-१ उ.] गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं। [२] से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जीवा सेया वि, निरेया वि?
गोयमा ! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा संसारसमावनगा य, असंसारसमावनगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावनगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—अणंतरसिद्धा य, परंपरसिद्धा य, तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते अणंतरसिद्धा ते णं सेया।
[८१-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं ?
[८१-२ उ.] गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा—संसार-समापन्नक और असंसार-समापनक। उनमें से जो असंसार-समापनक हैं, वे सिद्ध जीव हैं । सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं । यथा—अनन्तर-सिद्ध और परम्पर-सिद्ध। जो परम्पर-सिद्ध हैं, वे निष्कम्प हैं, और जो अनन्तर-सिद्ध हैं, वे सकम्प हैं।
८२. ते णं भंते ! कि देसेया, सव्वेया। गोयमा ! नो देसेया, सव्वेया। [८२ प्र.] भगवन् ! (अनन्तरसिद्ध, जो सकम्प हैं) वे देशकम्पक हैं या सर्व-कम्पक हैं ? [८२ उ.] गौतम ! वे देशकम्पक नहीं, सर्व-कम्पक हैं।
८३. तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—सेलेसिपडिवनगा य, असेलेसिपडिवनगा य। तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवनगा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवनगा ते णं सेया।
[८३] जो संसार-समापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे हैं । यथा—शैलेशी-प्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। जो शैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे निष्कम्प हैं, किन्तु जो अशैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे सकम्प हैं।
१. पण्णवणासुत्तं भाग १, सू. ९०१-२४, पृ. २२३-२८ (श्री महावीर जैन विद्यालय से प्रकाशित)