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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा।
[३२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। _[३२ उ.] गौतम ! ओघादेश (सामान्य की अपेक्षा) से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश (प्रत्येक की अपेक्षा) से वे न तो कृतयुग्म हैं, न त्र्योज हैं और न द्वापरयुग्म हैं, किन्तु कल्योज हैं।
३३. एवं जाव सिद्धा। [३३] इसी प्रकार सिद्धपर्यन्त जानना चाहिए। ३४. जीवे णं भंते ! पएसट्ठताए किं कड० पुच्छा।
गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावर० नो कलियोगे; सरीरपएसे पडुच्च सिय कङजुम्मे जाव सिय कलियोगे।
[३४ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न।
[३४ उ.] गौतम ! जीव प्रदेशार्थ से कृतयुग्म है, योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा जीव कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज भी होता है।
३५. एवं जाव वेमाणिए। [३५] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना। ३६. सिद्धे णं भंते ! पएसट्ठताए किं कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, नो कलियोगे। [३६ प्र.] भगवन् ! सिद्ध भगवान् प्रदेशार्थरूप (आत्मप्रदेशों की अपेक्षा) से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पृच्छा। [३६ उ.] गौतम ! वह कृत्ययुग्म हैं, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं। ३७. जीवा णं भंते ! पदेसट्ठताए किं कडजुम्मा० पुच्छा।
गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा; सरीरपएसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि।
[३७ प्र.] भगवन् ! जीव प्रदेशों की अपेक्षा क्या कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[३७ उ.] गौतम ! (अनेक) जीव आत्मप्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश और विधानादेश से भी कृतयुग्म हैं किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं हैं। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा जीव ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज हैं । विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं।
३८. एवं नेरइया वि।