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________________ ३३०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१८ उ.] गौतम ! वह अवगाढ़ है, अनवगाढ़ नहीं। १९. जदि ओगाढे किं संखेजपएसोगाढे, असंखेजपएसोगाढे, अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! नो संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे। [१९ प्र.] भगवन् ! यदि वह (धर्मास्तिकाय) अवगाढ़ है, तो संख्यात-प्रदेशावगाढ़ है, असंख्यातप्रदेशावगाढ़ है अथवा अनन्त-प्रदेशावगाढ़ है ? . [१९ उ.] गौतम ! वह संख्यात-प्रदेशावगाढ़ नहीं और अनन्त-प्रदेशावगाढ़ भी नहीं, किन्तु असंख्यातप्रदेशावगाढ़ है। २०. जदि असंखेजपएसोगाढे किं कडजुम्मपदेसोगाढे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोग०, नो दावरजुम्म०, नो कलियोगपएसोगाढे। [२० प्र.] भगवन् ! यदि वह असंख्यात-प्रदेशावगाढ़ है, तो क्या कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न। [२० उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु न तो त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ है, न द्वापरयुग्मप्रदेशावगाढ़ और न कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है। २१. एवं अधम्मत्थिकाये वि। [२१] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में समझना चाहिए। २२. एवं आगासत्थिकाये वि। [२२] आकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। २३. जीवत्थिकाये पोग्गलत्थिकाये अद्धासमये एवं चेव। [२३] जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल) के विषय में भी यही वक्तव्यता है। २४. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं ओगाढा, अणोगाढा ? जहेव धम्मत्थिकाये। [२४ प्र.] भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी अवगाढ़ है या अनवगाढ़ है ? [२४ उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय के समान इसकी वक्तव्यता कहनी चाहिए। २५. एवं जाव अहेसत्तमा। [२५] इसी प्रकार (शर्कराप्रभा से ले कर) अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए। २६. सोहम्मे एवं चेव। सौधर्म देवलोक के विषय में भी यही कथन करना चाहिए।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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