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________________ पच्चासवां शतक : उद्देशक-३] [३०७ परिमण्डल-संस्थान : द्विविध-युग्म-प्रदेशिक-परिमण्डल-संस्थान केवल युग्म- 5555 प्रदेशिक होता है। इनमें से प्रतर-परिमण्डल जघन्य २० प्रदेशों का होता है । यथा उसके ऊपर दूसरा प्रतर-परिमण्डल रखने से जघन्य ४० प्रदेशों का घन-परिमण्डल होता है। पंच संस्थानों में एकत्व-बहुत्वदृष्टि से द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता की अपेक्षा कृतयुग्मादि निरूपण ४२. परिमंडले णं भंते ! संठाणे दव्वट्ठताए किं कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोए ? गोयमा ! नो कडजुम्मे, णो तेयोए, णो दावरजुम्मे, कलियोए। [४२ प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है, त्र्योज है, द्वापरयुग्म है अथवा कल्योज है ? [४२ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं, द्वापरयुग्म भी नहीं, किन्तु कल्योज है। ४३. वट्टे णं भंते ! संठाणे दव्वट्ठताए ? एवं चेव। [४३ प्र.] भगवन् ! वृत्त-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । [४३ उ.] गौतम ! (इसका कथन भी) पूर्ववत् जानना। ४४. एवं जाव आयते। [४४] इसी प्रकार आयत-संस्थान पर्यन्त जानना। ४५. परिमंडला णं भंते ! संठाणा दव्वट्ठताए किं कडजुम्मा, तेयोगा० पुच्छा। गोयमा ! ओघाएसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कालियोगा। विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलिओगा। [४५. प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं, त्र्योज हैं या कल्योज _ [४५ उ.] गौतम ! ओघादेश से—(सामान्यतः सर्वसमुदितरूप से) कदाचित् कृतयुग्म, कदाचित् योज, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं। विधानादेश से—(प्रत्येक की अपेक्षा से) कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं, द्वापरयुग्म नहीं, किन्तु कल्योज हैं। ४६. एवं जाव आयता। [४६] इसी प्रकार (अनेक) आयत-संस्थान तक जानना चाहिए। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६१-८६२ (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३२२८-३२२९ (ग) भगवती. उपक्रम (परिशिष्ट) पृ. ५६०-५६१
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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