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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-३] [३०३ [३८ प्र.] भगवन् ! यस्रसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है ? [३८ उ.] गौतम ! यस्रसंस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा—घनत्र्यस्र और प्रतरत्र्यस्र। उनमें से जो प्रतरत्र्यस्त्र है, वह दो प्रकार का कहा है। यथा—ओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक। ओज-प्रादेशिक जघन्य तीन प्रदेश वाला और तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। उनमें से जो घनत्र्यस्त्र है वह दो प्रकार का कहा है, यथाओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक।ओज-प्रदेशिक घनत्र्यस्त्र जघन्य पैंतीस प्रदेशों वाला और पैंतीस आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। युग्मप्रदेशिक घनत्र्यस्त्र जघन्य चार प्रदेशों वाला और चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। ३९. चउरंसे णं भंते ! संठाणे कतिपदेसिए० पुच्छा ? गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे पन्नत्ते, भेदो जहेव वट्टस्स जाव तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं नवपएसिए, नवपएसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, असंखेजपएसोगाढे पन्नत्ते। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं चउपएसिए, चउपएसोगाढे पन्नत्ते; उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तं चेव। तत्थ णं जे से घणचउरंसे से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—ओयपएसिए य, जुम्मपएसिए या तथ्य णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं सत्तावीसतिपएसिए, सत्तावीसतिपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तहेव। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं अट्ठपएसिए, अट्ठपएसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तहेव। [३९ प्र.] भगवन् ! चतुरस्रसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? [३९ उ.] गौतम ! चतुरस्रसंस्थान दो प्रकार का कहा है, यथा-घन-चतुरस्र और प्रतर-चतुरस्र, इत्यादि, वृत्तसंस्थान के समान, उनमें से प्रतर-चतुरस्र के दो भेद-ओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक कहना। यावत् ओज-प्रदेशिक प्रतर-चतुरस्र जघन्य नौ प्रदेश वाला और नौ आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। युग्म-प्रदेशिक प्रतरचतुरस्र जघन्य चार प्रदेश वाला और चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। घन-चतुरस्र दो प्रकार का कहा है, यथा-ओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक। ओजप्रदेशिक घन-चतुरस्र जघन्य सत्ताईस प्रदेशों वाला और सत्ताईस आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है। युग्म-प्रदेशिक घन-चतुरस्त्र जघन्य आठ प्रदेशों वाला और आठ आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। ४०. आयते णं भंते ! संठाणे कतिपएसिए कतिपदेसोगाढे पन्नत्ते ? - गोयमा ! आयते णं संठाणे तिविधे पन्नत्ते, तं जहा–सेढिआयते, पयरायते, घणायते। तत्थ णं जे से सेढिआयते से दुविहे पन्नत्ते,तं जहा ओयपदेसिए य जुम्मपएसिए या तत्थ णंजे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसिए, तिपएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तं चेव। तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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