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________________ २९८ ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संस्थानों की अनन्तता — पांचों ही संस्थान अनन्त हैं, संख्यात और असंख्यात नहीं हैं । ११. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता ? गोमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता । [११ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [११ उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं । १२. वट्टा णं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा० ? एवं चेव । [१२ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? [१२ उ.] वे भी पूर्ववत् समझना । १३. एवं जाव आयता । [१३] इसी प्रकार आयत तक समझना । १४. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवी परिमंडला संठाणा० ? एवं चेव । [१४प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१४ उ.] इसी प्रकार पूर्ववत् समझना । १५. एवं जाव आयता । [१५] इसी प्रकार आगे आयत पर्यन्त (समझना चाहिए।) १६. एवं जाव अहेसत्तमाए । [१६] इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिए। १७. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे परिमंडला संठाणा० ? एवं चेव । [१७ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१७ उ.] पूर्ववत् समझना । १८. एवं जाव अच्चुते । [१८] (ईशान से लेकर ) अच्युत तक इसी प्रकार कहना । १९. गेविज्जविमाणाणं भंते ! परिमंडला संठाणा० ? १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ आदि), पृ. ९७६
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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