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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-१] [२८१ जोए असंखेजगुणे २, बेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ३, एवं तेइंदियस्स० ४, एवं चउरिदियस्स० ५, असन्निस्स पंचेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ६, सन्निस्स पंचेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ७, सुहुमस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ८, बादरस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ९, सुहुमस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १०, बायरस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे ११, सुहमस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १२, बादरस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १३, बेंदियस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे १४, एवं तेंदियस्स १५, एवं जाव सन्निस पंचेंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे १६-१८, बेंदियस्स अपजत्तगए उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १९, एवं तेंदियस्स वि २०, एवं जाव सण्णिपंचेदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २१-२३, बेंदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २४, एवं तेइंदियस्स वि पज्जगत्तस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २५, चउरिदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसएजोए असंखेजगुणे २६, असन्निपंचिंदियपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २७, एवं सण्णिस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तंगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २८।। ___ [५ प्र.] भगवन् ! इन चौदह प्रकार के संसार-समापनक जीवों में जघन्य और उत्कृष्ट योग की अपेक्षा से, कौन जीव, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [५ उ.] गौतम ! १. अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग सबसे अल्प है, २. बादर अपर्याप्तक एकेन्द्रिय का जघन्य योग उससे असंख्यातगुना है, ३. उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ४. उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ५. उससे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ६. उससे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ७. उससे अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ८. उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, ९. उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, १०. उससे अपर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, ११. उससे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, १२. उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, १३. उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, १४. उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, (१५-१६-१७-१८) उससे पर्याप्त त्रीन्द्रिय, पर्याप्त चतुरिन्द्रिय, पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुना है, १९. उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, (२०-२१-२२-२३) इसी प्रकार उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय, अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय, अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय और अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुना है, २४. उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, २५. इसी प्रकार पर्याप्त त्रीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, २६. उससे पर्याप्त चतुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, २७. उससे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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