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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक- २१] में उत्पन्न होता है, तब उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं । ' देवों की अपेक्षा मनुष्यों में उत्पत्ति - प्ररूपणा १३. जदि देवेहिंतो उवव० किं भवणवासिदेवेहिंतो उवव० वाणमंतरजोतिसिय वेमाणियदेवेहिंतो उवव० ? [ २४९ गोयमा ! भवणवासी० जाव वेमाणिय० । [१३ प्र.] भगवन् ! यदि वे (मनुष्य) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१३ उ.] गौतम ! वे (मनुष्य) भवनवासी यावत् वैमानिक देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। विवेचन — निष्कर्ष — मनुष्य भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक, इन चारों प्रकार के देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले भवनवासी आदि चारों प्रकार के देवों के उत्पाद - परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा १४. जदि भवण० किं असुर० जाव थणिय० ? गोयमा ! असुर० जाव थणिय० । [१४ प्र.] भगवन् ! यदि वे (मनुष्य), भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे 'असुरकुमारभवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् स्तनितकुमार भ० देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । [१४ उ.] गौतम ! वे असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। १५. असुरकुमारे णं भंते । जे भविए मणुस्सेसु उवव० से णं भंते । केवति० ? गोयमा ! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु, उववज्जेजा । एवं चे पंचेंदियतिरिक्खजोणिउद्देस्यवत्तव्वया सा चेव एत्थ वि भाणियव्वा, नवरं जहा तहिं जहन्नगं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु तहा इहं मासपुहत्तट्ठिईएसु, परिमाणं जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। सेसं तं चेव जाव ईसाणदेवो ति । एयाणि चेव णाणत्ताणि । सणकुमारादीया जाव सहस्सारो त्ति, जहेव पंचेंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए नवरं परिमाणे जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति । उववाओ जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उवव० । सेसं तं चेव । संवेहं वासपुहत्तपुव्वकोडीसु करेज्जा । १. (क) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ८४५ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन ) भा. ६, पृ. ३१५१-५२
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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