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________________ २४८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ९. जति आउकाइए० एवं आउकाइयाण वि। [९ प्र.] यदि वे अप्कायिकों से आकर उत्पन्न हों तो? [९ उ.] अप्कायिकों के लिए भी (पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए) १०. एवं वणस्सतिकाइयाण वि। [१०] इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों के लिए भी (पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिए) ११. एवं जाव चउरिदियाणं। [११] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय-पर्यन्त जानना। १२. असन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिया असन्निमणुस्सा सन्निमणुस्सा य, एए सव्वे वि जहा पंचेंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए तहेव भाणितव्वा, नवरं एताणि चेव परिमाणअज्झवसाणणाणत्ताणि जाणिज्जा पुढविकाइयस्स एत्थ चेव उद्देसए भणियाणि। सेसं तहेव निरवसेसं। . [१२] असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, असंज्ञी मनुष्य और संज्ञी मनुष्य, इन सभी के विषय में पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक उद्देशक में कहे अनुसार कहना चाहिए । परन्तु विशेषता यह है कि इन सबके परिणाम और अध्यवसायों की भिन्नता पृथ्वीकायिक के इसी उद्देशक में कहे अनुसर समझनी चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना। - विवेचन–स्पष्टीकरण-(१) यहाँ पृथ्वीकाय से उत्पन्न होने वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च की जो वक्तव्यता कही है, वही पृथ्वीकाय से उत्पन्न होने वाले मनुष्य के लिए भी जाननी चाहिए। (२) तृतीय गमक में पृथ्वीकायिक से निकल कर उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य में जो उत्पन्न होते हैं, वे उत्कृष्ट संख्यात होते हैं। यद्यपि यहाँ सामान्य रूप (औधिकरूप) से मनुष्य का ग्रहण होने से सम्मूर्छिम मनुष्यों का भी ग्रहण हो जाता है और वे असंख्यात हैं, तथापि उत्कृष्ट स्थिति में पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले मनुष्य संख्यात ही होते हैं, जबकि पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च असंख्यात हो जाते हैं। छठे और नौवें गमक में भी यही कथन समझना चाहिए। (३) मध्यत्रिक के प्रथम (अर्थात् चौथे) गमक में जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक का मनुष्य में अधिक उत्पाद होता है। उस समय पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य में उत्पत्ति होती है, तब उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं और जब उसी गमक में जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में उत्पत्ति होती है तब अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं। इसलिए चौथे गमक में दोनों प्रकार के अध्यवसाय बताए हैं । मध्यत्रिक में दूसरे ( अर्थात् पांचवें) गमक में जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक जब जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में उत्पन्न होता है, तब उसके अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं। क्योंकि जघन्य स्थिति में प्रशस्त अध्यवसायों से उत्पत्ति नहीं होती। मध्यत्रिक के तीसरे (यानी छठे) गमक में जब जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक, उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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