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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न ।
[४७ उ.] गौतम ! यहाँ असुरकुमार देव की पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता यावत्-भवादेश तक कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना चाहिए। (संवेध) कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक देशोन दो पल्योपम, (यावत् इतने काल गमनागमन करता है।) इस प्रकार नौ ही गमक असुरकुमार के गमकों के समानं जानना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ स्थिति और कालादेश इनको (भिन्न) जानना। इसी प्रकार (सुपर्णकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए।
विवेचन–नागकुमार से स्तनितकुमार तक में उत्पन्न होने सम्बन्धी द्वार—कुछ बातों को छोड़कर प्रायः सभी गमक असुरकुमार के गमकों की तरह हैं। तीन बातों में भिन्नता है—स्थिति, अनुबन्ध और संवेध (कालादेश), जिनका उल्लेख मूलपाठ में किया गया है। पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले वाणव्यन्तर देवों में उत्पाद-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
४८. जति वाणमंतरेहितो उववजंति किं पिसायवाणमंतर० जाव गंधव्ववाणमंतर० ? गोयमा ! पिसायवाणमंतर० जाव गंधव्ववाणमंतर०।
[४८ प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव), वाणव्यन्तर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे पिशाच वाणव्यन्तरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् गन्धर्व वाणव्यन्तरों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[४८ उ.] गौतम ! वे पिशाच वाणव्यन्तरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् गन्धर्व वाणव्यन्तरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं।
४९. वाणमंतरदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइए?
एएसि पि असुरकुमारगमगसरिसा नव गमगा भाणियव्वा। नवंर ठिति कालादेसं च जाणेजा। ठिती जहन्नेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पलिओवमं । सेसं तहेव।
[४९ प्र.] भगवन् ! जो वाणव्यन्तर देव, पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? .......... इत्यादि प्रश्न।
[४९ उ.] गौतम ! इनके भी नौ गमक असुरकुमार के नौ गमकों के सदृश कहने चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ स्थिति और कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। इनकी स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक पल्योपम की होती है। शेष सब उसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए। [गमक १ से ९ तक]
विवेचन—निष्कर्ष—(१) वाणव्यन्तर देवों से आकर पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने वाले