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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-१२] [२०३ विद्युतकुमार, (५)अग्निकुमार, (६) वायुकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) द्वीपकुमार, (९) दिक्कुमार और (१०) स्तनितकुमार। पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले असुरकुमार में उत्पाद-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा ४२. असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवति० ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं० उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्विती०। [४२ प्र.] भगवन् ! जो असुरकुमार पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? [४२ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। ४३. ते णं भंते ! जीवा० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेजा वा उवव० । [४३ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [४३ उ.] गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। ४४. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी जाव परिणमंति। [४४ प्र.] भगवन् ! उन जीवों (पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने वाले भवनपति देवों) के शरीर किस प्रकार के संहनन वाले कहे गए हैं ? [४४ उ.] गौतम ! उनके शरीर छहों प्रकार के संहननों से रहित होते हैं, (क्योंकि उनके अस्थि, शिरा, स्नायु इत्यादि नहीं होते; परन्तु जो इष्ट, कान्त और मनोज्ञ पुद्गल हैं, वे शरीरसंघातरूप से) यावत् परिणत होते हैं। ४५. तेसि णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा०? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—भवधारणिज्जा य, उत्तरवेउब्बिया य। तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्बिया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेजतिभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं। १.. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भाग २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ९३९ (ख) भवनवासिनोऽसुर-नाग-सुपर्ण-विद्युदग्नि-वात-स्तनितोदधि-द्वीप-दिक्कुमाराः।-तत्त्वार्थ. अ. ४, सू. ११ 'जाव' पद से सचितपाठ—'णेवट्ठीणेव छिरा नेव ण्हारू नेव संघयणमत्थि।जे पोग्गलाइट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामाते तेसि सरीरसंघायत्ताए त्ति।' -अ. वृ. पत्र ८३२
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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