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________________ १९४] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उनके भी तीनों गमक (७-८-९) औधिक गमकों (१-२-३) के समान कहने चाहिए । विशेष यह है कि इन (अन्तिम) तीनों गमकों में स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना चाहिए। भव की अपेक्षा से — जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा सेविचार करके संवेध कहना चाहिए, यावत् नौवें गमक में जघन्य बारह वर्ष अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है। [ गमक ७-८-९] विवेचन — द्वीन्द्रिय में उत्पत्ति-सम्बन्धी नौ गमकों के विषय में स्पष्टीकरण (१) अवगाहना — द्वीन्द्रियों की उत्कृष्ट अवगाहना जो बारह योजन की बताई गई है, वह शंख आदि की अपेक्षा से समझनी चाहिए। कहा गया है— संखो पुण बारस जोइणाई । (२) सम्यग्दृष्टित्व — औधिक द्वीन्द्रिय का औधिक पृथ्वीकायिकों में उत्पत्तिरूप प्रथम गमक में जो सम्यग्दृष्टित्व कहा गया है, वह सास्वादन - सम्यक्त्व की अपेक्षा से समझना चाहिए। (३) भवादेश और कालादेश — द्वीन्द्रिय सम्बन्धी तृतीय गमक में भवादेश से उत्कृष्ट ८ बतलाए हैं, क्योंकि यहाँ एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति वाला है । कालादेश से द्वीन्द्रिय के चार भवों की उत्कृष्ट स्थिति ४८ वर्ष होती है और पृथ्वीकाय के चार भवों की उत्कृष्ट स्थिति ८८,००० वर्ष होती है। दोनों मिलाकर ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष बताए गए हैं। (४) द्वीन्द्रिय के मध्यमत्रिक में सात बातों का अन्तर — प्रथम त्रिक (तीनों गमकों) में उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन बताई गई थी, किन्तु यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग बताई गई है। प्रथम के तीन गमकों में सम्यग्दृष्टि बताया गया है, किन्तु इन (मध्यम) के तीन गमकों में सम्यग्दृष्टि का अभाव है, क्योंकि जघन्य स्थिति होने से इनमें सास्वादान सम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है। इनमें दो अज्ञान ही पाये जाते हैं, ज्ञान नहीं। योगद्वार में जघन्य स्थिति होने के कारण अपर्याप्तक होने से इनमें वचनयोग नहीं पाया जाता। इनकी स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है। जबकि पहले १२ वर्ष की बतलाई थी। अल्प स्थिति होने से अध्यवसाय भी अप्रशस्त होते हैं। सातवाँ नानात्व अनुबन्ध स्थिति के 'अनुसार होता है । (५) संवेध — चौथे और पांचवें गमक में भवादेश से उत्कृष्ट संख्यात भव होते हैं और कालादेश से संख्यातकाल होता है। छठे गमक का संवेध भवादेश से आठ भव तथा कालादेश से अन्तर्मुहूर्त अधि २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८,००० होता है । सातवें गमक का संवेध भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव । कालादेश से ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष। आठवें गमक में चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ४८ वर्ष । नौवें गमक का संवेध जघन्य १२ वर्ष अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष का होता है । अत: इस प्रकार सर्वत्र उपयोग पूर्वक जघन्य और उत्कृष्ट संवेध कहना चाहिए। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८२९ २. वही, पत्र ८२९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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