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________________ चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२] [१६७ होते हैं। उनमें चार संज्ञा, चार कषाय, पांच इन्द्रियाँ तथा आदि के तीन समुद्घात होते हैं । वे समुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात किये विना भी मरते हैं। उनमें साता और असाता दोनों प्रकार की वेदना होती है। वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते हैं, नपुंसकवेदी नहीं होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य कुछ अधिक (सातिरेक) पूर्वकोटि वर्ष की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। उनके अध्यवसाय प्रशस्त भी और अप्रशस्त भी होते हैं । उनका अनुबन्ध स्थिति के तुल्य होता है, कायसंवेध—भव की अपेक्षा से—दो भव ग्रहण करते हैं, काल की अपेक्षा से-जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट छह पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करते हैं। [सू. ६-७ प्रथम गमक] ८. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, एसा चेव वत्तव्वया, नवरं असुरकुमाट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। [बीओ गमओ]। [८] यदि वह (असंख्यातवर्षायुष्क पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जीव जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो इसकी वक्तव्यता पूर्वोक्तानुसार जाननी चाहिए। विशेष असुरकुमारों की स्थिति और संवेध स्वयं जान लेना चाहिए। [सू. ८ द्वितीय गमक] .९. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं तिपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमद्वितीएसु उववजेजा। एसा चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती से जहन्नेणं तिण्णि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाइं।एवं अणुबंधो वि, कालाएसेणं जहनेणं छप्पलिओवमाइं, एवतियं० सेसं तं चेव।[तइओ गमओ]। [९] यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना। विशेष यह है कि उसकी स्थिति अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम होता है। काल की अपेक्षा से—जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। शेष सब कथन पूर्ववत् जानना। [सू. ९ तृतीय गमक] १०. सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगपुव्वकोडिआउएसु उववज्जेज्जा। [१०] यदि वह (असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। ११. ते णं भंते ! ०? अवसेसं तं चेव जाव भवाएसो त्ति, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगं धणुसहस्सं। ठिती जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि सातिरेगा पुव्वकोडी, एवं अणुबंधो वि। कालाएसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहि वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं सातिरेगाओ
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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