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________________ १३४] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक रूप में उत्पन्न हो, तो वह कितना काल सेवन करता है और कितन काल तक गमनागमन करता रहता है? [३४ उ.] गौतम! वह भवादेश से दो भव ग्रहण करता है और कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त-अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त - अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग काल सेवन करता है, यावत् (इतने काल तक गमनागमन) करता है । [ सू. ३२. से ३४ तक चतुर्थ गमक ] ३५. जहन्नकालद्वितीयपज्जत्ताअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जहन्नकालट्ठिए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्टितीएसु उववज्जेज्जा, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठितीसु उववज्जेज्जा । [३५ प्र.] भगवन्! जघन्यकाल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जो जीव जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो, भगवन् ! वह जीव कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? [३५ उ.] गौतम! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ते णं भंते! जीवा० ? ३६. सेसं तं चेव । ताइं चेव तिन्नि णाणत्ताइं जाव - ( अणुबंधो ) । [३६ प्र.] भगवन्! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [३६ उ.] (गौतम!) यहाँ से लेकर अनुबन्ध तक पूर्ववत् (सू. ६ से २४ तक) समझना चाहिए । विशेषतः उन्हीं (पूर्वोक्त) तीन बातों ( आयु-स्थिति, अध्यवसाय और अनुबन्ध) में अन्तर है । (जिसे पूर्वकथित) यावत् (अनुबन्ध तक सू. ३३ / १-२-३-४ सूत्रवत् जानना चाहिए।) ३७. से णं भंते! जहन्नकालद्वितीयपज्जत्ता० जाव जोणिए जहन्नकालद्वितीयरयणप्पभापुढवि० रवि जाव ? गोयमा! भवाएसेणं दो भवग्गहणाई; कालाएसेणं जहन्त्रेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेण वि दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा जाव करेज्जा । [ सु० ३५-३७ पंचमो गमओ ] | [ ३७ प्र.] भगवन्! जो जीव, जघन्यकाल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिक हो, फिर वह जघन्यस्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, और पुनः वह पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक हो तो, कितना काल सेवन करता है और कितने काल तक गमनागमन करता रहता है?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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