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________________ महामन्त्र साधक के अन्तर्मानस में यह भावाना पैदा करता है कि मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर से परे हूँ। वह भेद-विज्ञान पैदा करता है । मन्त्र हृदय की आँख है । मन्त्र वह शक्ति है— जो आसक्ति को नष्ट कर अनासक्ति पैदा करती है। नमस्कार महामंत्र का उपयोग जो साधक आसक्ति के लिए करते हैं—वे लक्ष्य भ्रष्ट हैं । लक्ष्यभ्रष्ट तीर का कोई उपयोग नहीं होता, वैसे ही लक्ष्यभ्रष्ट मंत्र का भी कोई उपयोग नहीं है । मन्त्र छोटा होता है। वह ग्रन्थ की तरह बड़ा नहीं होता। हीरा छोटा होता है, चट्टान की तरह बड़ा नहीं होता, पर बड़ी-बड़ी चट्टानों को वह काट देता है। अंकुश छोटा होता है, किन्तु मदोन्मत्त गजराज को अधीन कर लेता है । बीज नन्हा होता है, पर वही बीज विराट् वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। वैसे ही नमोक्कार मंत्र में जो अक्षर -वे भी बीज की तरह हैं । नमोक्कार मंत्र में ३५ अक्षर हैं । ३ में ५ जोड़ने पर ८ होते हैं। जैनदृष्टि से कर्म आउ हैं। इस महामंत्र की साधना से आठों कर्मों की निर्जरा होती है । ५ – सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । ५ – पंचमहाव्रत और पंचसमिति का प्रतीक है। जब नमोक्कार मंत्र के साथ रत्नत्रय व महाव्रत का सुमेल होता है या अष्टक प्रवचनमाता की साधना भी साथ चलती है तो उस साधना में अभिनव ज्योति पैदा हो जाती है। इस प्रकार यह महामंत्र मन का त्राण करता है। अशुभ विचारों के प्रभाव से मन को मुक्त करता है। नमोक्कार महामंत्र हमारे प्रसुप्त चित्त को जागृत करता है। यह मंत्र शक्ति जागरण का अग्रदूत है। इस मंत्र के जाप इन्द्रियों की वल्गा हाथ में आ जाती है, जिससे सहज ही इन्द्रिय-निग्रह हो जाता है। मंत्र एक ऐसी छैनी है जो विकारों की परतों को काटती है। जब विकार पूर्णरूप से कट जाते हैं तब आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है। महामंत्र की जप- साधना से साधक अन्तर्मुखी बनता है, पर जप की साधना विधिपूर्वक होनी चाहिये। विधिपूर्वक किया गया कार्य ही सफल होता है। डॉक्टर रुग्ण व्यक्ति का ऑपरेशन विधिपूर्वक नहीं करता है तो रुग्ण व्यक्ति के प्राण संकट में पड़ जाते हैं। बिना विधि के जड़ मशीनें भी नहीं चलतीं । सारा विज्ञान विधि पर ही अवलम्बित है । अविधिपूर्वक किया गया कार्य निष्फल होता है । यही स्थिति मंत्र जप की भी है। नमोक्कार महामंत्र में पांच पद हैं । ३५ अक्षर हैं। इनमें ११ अक्षर लघु हैं, २४ गुरु हैं; १५ दीर्घ हैं और २० ह्रस्व हैं, ३५ स्वर हैं और ३४ व्यंजन हैं। यह एक अद्वितीय बीजसंयोजना है। 'नमो अरिहंताणं' में सात अक्षर हैं, "नमो सिद्धाणं" में पांच अक्षर हैं, 'नमो आयरियाणं' में सात अक्षर हैं, 'नमो उवज्झायाणं' में सात अक्षर हैं और ‘“नमो लोए सव्वसाहूणं” में नौ अक्षर हैं— इस प्रकार इस महामंत्र में कुल ३५ अक्षर हैं। स्वर और व्यंजन का विश्लेषण करने पर " नमो अरिहंताण" में ७ स्वर और ६ व्यंजन हैं, " नमो सिद्धाणं" में ५ स्वर और ६ व्यंजन हैं, “नमो आयरियाणं' में ७ स्वर और ६ व्यंजन हैं, "नमो उवज्झायाणं" में ७ स्वर और ७ ही व्यंजन हैं तथा "नमो लोए सव्वसाहूणं" में ९ स्वर तथा ९ व्यंजन हैं— इस प्रकार नमोक्कार महामंत्र में ३५ स्वर और ३४ व्यंजन हैं । यह महामंत्र जैन आराधना और साधना का केन्द्र है, इसकी शक्ति अपरिमेय है। इस महामंत्र के वर्णों के संयोजन पर चिन्तन करें तो यह बड़ा अद्भुत और पूर्ण वैज्ञानिक है। इसके बीजाक्षरों को आधुनिक शब्द विज्ञान की कसौटी पर कसने पर यह पाते हैं कि इसमें विलक्षण ऊर्जा है और शक्ति का भण्डार छिपा हुआ है। प्रत्येक अक्षर का विशिष्ट अर्थ है, प्रयोजन है और ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है। [२३]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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