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________________ [११५ तेवीसइमं सयं : तेईसवाँ शतक तेईसवें शतक का मंगलाचरण १. नमो सुयदेवयाए भगवतीए। [१] भगवद्वाणीरूप श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार हो। विवेचन-यह व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का मध्य-मंगलाचरण प्रतीत होता है। तेईसवें शतक के पांच वर्गों के नाम तथा उसके पचास उद्देशकों का निरूपण २. आलुय १ लोही २ अवए ३ पाढा ४ तह मासवण्णि वल्ली य ५। पंचेते दसवग्गा पण्णासं होंति उद्देसा ॥१॥ [२ गाथार्थ—] तेइसवें शतक में दस-दस उद्देशकों के पांच वर्ग ये हैं—(१) आलुक, (२) लोही, (३) अवक, (४) पाठा और (५) माषपर्णी वल्ली। इस प्रकार पांच वर्गों के पचास उद्देशक होते हैं। विवेचन—पांच वर्गों का संक्षिप्त परिचय (१) प्रथम वर्ग आलुक में आलू, मूला, आर्द्रक, हल्दी आदि साधारण वनस्पति के प्रकार सम्बन्धी मूलादि १० उद्देशक हैं। (२) द्वितीय वर्ग-लोही—में लोही, नीहू, थीहू आदि अनन्तकायिक वनस्पति से सम्बन्धित दस उद्देशक हैं। (३) तृतीय वर्ग आयमें अवक आदि वनस्पति सम्बन्धी दस उद्देशक हैं। (४) चतुर्थ वर्ग—पाठा–में पाठा, मृगवालुंकी आदि वनस्पति सम्बन्धी दस उद्देशक हैं। और , (५) पंचम वर्ग–माषपर्णी में माषपर्णी आदि वनस्पतियों से सम्बन्धित दश उद्देशक हैं। प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से इस शतक में पांचों वर्गों के ५० उद्देशक होते हैं। *** १. भगवतीसूत्र चतुर्थखण्ड (गुजराती अनुवाद, पं. भगवानदासजी सम्पादित) प्रति में (पृ. १३६) यह मंगलाचरण-पाठ नहीं हैं। - सं. २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८०५
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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