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चउत्थे 'गुच्छ' वग्गे : दस उद्देसगा ___चतुर्थ 'गुच्छ' वर्ग : दश उद्देशक
इक्कीसवें शतक के चतुर्थवर्गानुसार चतुर्थ गुच्छवर्ग का निरूपण
१. अह भंते ! वाइंगणि-अल्लइ-बोंडइ० एवं जहा पण्णावणाए गाहाणुसारेणं णेयव्वं जाव गंजपाडला-दासि-अंकोल्लाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति० ? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा' जाव बीयं ति निरवसेसं जहा वंसवग्गो (स० २१ व० ४)
॥ बावीसइमे सए : चउत्थो वग्गो समत्तो॥२२-४॥ [१ प्र.] भगवन् ! बैंगन, अल्लइ, बोंडइ (पोंडइ) इत्यादि वृक्षों के नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार जानना चाहिए, यावत् गंजपाटला, दासि (वासी) अंकोल्ल तक, इन सभी वृक्षों (पौधों) के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! यहाँ भी मूल से लेकर बीज तक समग्ररूप से मूलादि दस उद्देशक (इक्कीसवें शतक चतुर्थ) वंशवर्ग के समान जानने चाहिए।
॥ बाईसवाँ शतक : चतुर्थ वर्ग समाप्त॥
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१. देखिए प्रज्ञापनासूत्र की ये गाथाएँ–
वाइंगणि-सल्लइ-थुडइ य तह कत्थुरी य जीभुमणा। रूवी आढईणीली तुलसी तह माउलिंगी य ॥ १८॥
इत्यादि यावत्-जीवइ केयइ तह गंजपाडला दा (वा) सि अंकोले ॥ २२॥ - प्रज्ञापना. पद १, पत्र ३२-२ २. अधिकपाठ-तालवग्गा-सरिसा नेयव्वा