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बीए' एगट्ठिय' वग्गे : दस उद्देसमा द्वितीय 'एकास्थिक' वर्ग : दश उद्देशक
प्रथम तालवर्गानुसार द्वितीय एकास्थिक वर्ग का निरूपण
१. अह भंते ! निंबंब-जंबु - कोसंब - ताल - अंकोल्ल - पीलु - सेलु - सल्लइ - मोयइ-मालुय-बउलपलास-करंज-पुत्तंजीवग-रिट्ठ-विहेलग-हरियग-भल्लाय - उंबरिय' - खीरणि - धायइ - पियाल - पूइयणिवाग-सेण्हण-पासिय सीसव- अयसि - पुन्नाग-नागरुक्ख-सीवण्णि-असोगाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति० ?
एवं मूलाईया दस उद्देसगा कायव्वा निरवसेसं जहा तालवग्गे ।
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॥ बावीसइमे सए : बितिओ वग्गो समत्तो ॥ २२-२॥
[१ प्र.] भगवन् ! नीम, आम्र, जम्बू (जामुन), कोशम्ब, ताल, अंकोल्ल, पीलु, सेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज, पुत्रंजीवक, अरिष्ट (अरीठा), बहेड़ा, हरितक (हर्डे), भिल्लामा, उम्बरिय (उम्बभरिक), क्षीरणी ( खिरनी), धातकी ( धावड़ी) प्रियाल (चारोली), पूतिक, निवाग (नीपाक), सेण्हक, पासिय, शीशम, अतसी, पुन्नाग (नागकेसर), नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, इन सब वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
पाठान्तर - १.
[१. उ.] गौतम ! यहाँ भी तालवर्ग के समान समग्र रूप से मूल आदि दस उद्देशक कहने चाहिए। ॥ बाईसवाँ शतक : द्वितीय वर्ग समाप्त ॥
उंबभरिय
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