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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
हस्त- पृथक्त्व की और फल तथा बीज की उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल - पृथक्त्व की होती है। इन सबकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है। शेष सब कथन शालिवर्ग के समान जानना चाहिए ।
इस प्रकार ये उद्देशक पूर्ण हुए।
विवेचन - शालिवर्ग के अतिदेशपूर्वक दश उद्देशक — इस शतक के वर्गों और उद्देशकों का प्रतिपाद्य विषय और व्याख्या प्रायः पूर्वोक्त इक्कीसवें शतक के समान है।
प्राचीन आचार्यों द्वारा निरूपित गाथा - देवों में से आकर किन-किन में उत्पत्ति होती है, किन में नहीं ? इसके लिए एक गाथा हैं
'पत्त - पवाले पुप्फे फले य बीए य होइ उववाओ।
रुक्खे सुरगणाणं पत्थ - रस - वन्न - गंधेसु ॥ '
अर्थात् इनमें से प्रशस्त रस, वर्ण और गन्ध वाले पत्र, प्रवाल, पुष्प, फल और बीज में देव आकर उत्पन्न होते हैं।
॥ बाईसवाँ शतक : प्रथम वर्ग समाप्त ॥
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८०४
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