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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र किया गया है। इनमें से कई प्रश्नों का समाधान ग्यारहवें शतक के प्रथम उत्पलोद्देशक के अतिदेशपूर्वक किया गया है। आगे के शतकों में उल्लिखित वर्गों में निर्दिष्ट मूलादि दस-दस उद्देशकों में इसी वर्ग के अनुसार समाधान सूचित किया गया है। * इन तीनों शतकों के प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक इस प्रकार हैं- (१) मूल, (२) कन्द, (३)
स्कन्ध, (४) त्वचा (छाल), (५) शाखा, (६) प्रवाल, (७) पत्र, (८) पुष्प, (९) फल और
(१०) बीज। * इक्कीसवें शतक में ८ वर्ग हैं । प्रत्येक वर्ग के १०-१० उद्देशक होने से आठ वर्गों के कुल ८० उद्देशक
होते हैं । बाईसवें शतक के ६ वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से ६० उद्देशक होते हैं।
तेईसवें शतक के ५ वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से ५० उद्देशक होते हैं। * इन तीनों शतकों में प्रतिपाद्य विषयों के पूर्वोक्त उत्पत्ति आदि द्वारों की चर्चा में प्राय: इक्कीसवें शतक के
प्रथम वर्ग या चतुर्थ वर्ग अथवा बाईसवें शतक के प्रथम वर्ग का अथवा आलुक वर्ग का अतिदेश किया गया है।
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१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २. (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ.८९० से ९०३