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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विसेसाहियावा ?
सव्वेसिं अप्पाबहुगं जहा छक्कसमजियाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं अभिलावो चुलसीतओ। [५५ प्र.] भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित आदि नैरयिकों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[५५ उ.] गौतम ! चतुरशीतिसमर्जित नोचतुरशीतिसमर्जित इत्यादि विशिष्ट नैरयिकों का अल्पबहुत्व षट्कसमर्जित आदि के समान समझना चाहिए और वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ 'षट्क' के स्थान में 'चतुरशीति' शब्द कहना चाहिए।
५६. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं चुलसीतिसमजियाणं, नोचुलसीतिसमज्जियाणं, चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जियाणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जिया, चुलसीतिसमजिया अणंतगुणा, नोचुलसीतिसमजिया अणंतगुणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ।
॥ वीसइमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥२०-१०॥
॥वीसइमं सयं समत्तं ॥२०॥ [५६ प्र.] भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित, नो-चतुरशीतिसमर्जित तथा चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्धों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[५६ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध हैं, उनसे चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं, उनसे नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं।
___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर यावत्-गौतम स्वामी विचरते हैं।
॥ वीसवाँ शतक : दशम उद्देशक समाप्त॥ ॥ वीसवां शतक सम्पूर्ण॥
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