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________________ अष्टविध कर्मों के त्रिविधबन्ध एवं उनकी चौवीस दण्डकों में प्ररूपणा ४. नाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स कतिविधे बंधे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविधे बंधे पन्नत्ते, तं जहा—जीवप्पयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे। [४ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [४ उ.] गौतम ! वह बन्ध तीन प्रकार का कहा गया है। यथा जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तरबन्ध और परम्परबन्ध। ५. नेरइयाणं भंते ! नाणावरणिजस्स कम्मस्स कतिविधे बंधे पन्नत्ते ? एवं चेव। [५ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [५ उ.] गौतम ! पूर्ववत् (त्रिविध बन्ध होता है।) ६. एवं जाव वेमाणियाणं। [६] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त (बन्धनिरूपण समझना चाहिए।) ७. एवं जाव अंतराइयस्स। [७] इसी प्रकार (दर्शनावरणीय से लेकर) यावत् अन्तराय कर्म तक के (बन्ध के विषय में जानना चाहिए। . विवेचन—ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध : जीवों से सम्बद्ध या असम्बद्ध ? -प्रस्तुत सूत्र ४ में ज्ञानावरणीयकर्म का तीन प्रकार का बन्ध कहा है, परन्तु वह जीव से सम्बद्ध हुए बिना हो नहीं सकता, इसलिए जीव (आत्मा) के साथ ज्ञानावरणीय कर्मपुद्गलों के सम्बन्ध की अपेक्षा से ही जीवप्रयोगबन्ध आदि बन्धत्रय घटित हो सकते हैं। यही कारण है कि अगले दो सूत्रों में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के प्रकार की प्ररूपणा की गई है। आठों कर्मों के उदयकाल में प्राप्त होने वाले बन्धत्रय का २४ दण्डकों में निरूपण ८. णाणावरणिज्जोदयस्स णं भंते ! कम्मस्स कतिविंधे बंधे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते। एवं चेव। [८ प्र.] भगवन् ! उदयप्राप्त ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [८ उ.] गौतम ! वह पूर्ववत् तीन प्रकार का कहा गया है। ९. एवं जाव नेरइयाण वि। [९] इसी प्रकार नैरयिकों के भी (उदयप्राप्त ज्ञानावरणीयकर्म के बन्ध-प्रकार के विषय में जान लेना चाहिए।)
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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